इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 हिंदी के पाठ बारह ‘विक्रमशिला’ (Vikramshila class 8th Hindi) के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे।
12 विक्रमशिला
प्रस्तुतत निबंध ‘विक्रमशिला’ शीर्षक पाठ में बौद्भकालीन शिक्षा केन्द्र विक्रमशिला विश्वविद्यालय की का वर्णन किया गया है। यह विश्वविद्यालय आज के कैम्ब्रिज एवं ऑक्सफोड विश्वविद्यालयों से कहीं अधिक उन्नत तथा गौर वशाली था। यह भागलपुर जिला जो प्राचीन अंग महाजन पद नाम से लोक प्रिय था कहलगाँव थाना क्षेत्र, पोस्ट पथरघट्टा के एक छोटे से गाँव अंतीचक में आठवीं शताब्दी के मध्य पालवंश के प्रतापी राजा धर्मपाल ने स्थापना की। विश्वभर के छात्र यहाँ पढ़ने के लिए आते थें।
प्रस्तुत पाठ ‘विक्रमशिला’ में भारत के गौरवशाली अतीत का वर्णन किया गया है। शिक्षा के क्षे़त्र में यह विश्वविद्यालय आज के कैम्ब्रिज एवं ऑकसफोर्ड से कहीं अधिक उन्नत तथा महत्वपूर्ण था यह भारतीय स्मिता का जीता-जागता उदाहरण था। इसकी स्थापना आठवी शताब्दी में पालवंश के सर्वाधिक प्रतापी राजा धर्मपाल ने भागलपुर जिले के कहलगाँव थानान्तर्गत एक छोटे से गाँव अंतीचक में स्थापना की थी इसका नाम विक्रमशिला रखा गया इस संबंध में मान्यता है कि यहाँ के आचार्यो के विक्रमपूर्ण आचरण एवं उनकी अखंड शील- संपन्नता के कारण यह नाम रखा गया यह भी कहा जाता है कि विक्रम नाम यक्ष को दमित कर इस स्थान पर बिहार बनाए जाने के कारण इसका नाम विक्रमशिला पड़ा। Vikramshila class 8th Hindi
इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत छ; महाविद्यालय थे, जहाँ अलग-अलग द्वार पंडित नियुक्त थे। द्वार पंडित के समझ मौखिक परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले छात्र ही प्रवेश पाने में सफल होते थे। यहाँ तंत्र, न्याय, काव्य तथा व्याकरण की शिक्षा दी जाती थी सभी आचार्य अपने-अपने विषय में पारंगत थे। यहाँ प्रथम कुलपति हरिभ्रद थे जिन्हें शांतिभद्र भी कहा जाता था। इसका पुस्तकालय समृद्भ था जिसमें तंत्र तर्क एवं दर्शन से संबंधित ग्रंथो का विशाल संग्रह था। पाण्डुलिषियों को तैयार करने के लिए आचार्य एवं शोधार्थी अधिकृत थे। प्रज्ञापारमिता की पाण्डुलिपि यहीं तैयार हुई थी।
दसवीं ग्यारहवीं शताब्दी तक यह पूर्वी एशिया का उत्कृष्ट शिक्षा केन्द्र बन चुका था। यहाँ वैसे विद्यार्थी को प्राथमिकता दी जाती थी, जो पूरे सत्र नियमित शिक्षा तथा शोधकार्य के आकांक्षी होथे थे। नवागत छात्रों को कुछ दिनों के लिए ‘भिक्षु वर्ग’ में रहना पड़ता था। आचार्य अपने शिष्य को पुत्रवत् व्यवहार करते थे। यहाँ तंत्र विद्या के अतिरिक्त व्याकरण, न्याय, सृष्टि विज्ञान, शब्द-विद्या, शिल्यविद्या, चिकित्सा, सांख्य, वैशेषिक, अध्यात्म, विज्ञान आदि की शिक्षा संस्कृत भाषा में दी जाती थी।
वर्तमान सरकारकी सकारात्मक सोच तथा पुरातात्विक विभाग के आर्थिक प्रयास से यह वर्षो गुमनाम रहने के बाद सुर्खियों में आया है। यहाँ 50 फीट ऊँची एवं 73 फीट चौड़ी इमारत के रूप् में प्रधान चैत्य तथा भगवान बुद्भ की प्रतिमा मिले हैं। कुछ क्षतिग्रस्त सीलें भी प्राप्त हुई है। जिनका सत्यापन ‘वीर वज्र’ से किया गया है। खुदाई का काम आरंभिक अवस्था में है। अनेक महत्वपूर्ण साक्ष्यों के प्रकाश में आने की संभावनाएँ है।
Vikramshila class 8th Hindi
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