इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 हिंदी के पाठ छ: ‘बिहारी के दोहे’ (Bihari Ke Dohe class 8th Hindi) के अर्थ को पढ़ेंगे। जिसके लेखक बिहारी है।
6. बिहारी के दोहे
’गागर में सागर‘ भरनें वाले कवि बिहारी रीतिकाल के प्रतिष्ठित श्रृंगारिक कवि माने जाते हैं, लेकिन इन्होंने भक्ति तथा नीतिपरक दोहों में भी अपनी काव्य-प्रतिभा का परिचय दिए है। इनके दोहों में जितना भाव गांभीर देखने को मिलता है, उतना अन्य दुर्लभ है।
मेरी भव बाधा हरौ राधा नागरि साय।
जा तन की झांई परै स्यामु हरित दुति होय।
प्रस्तुत पंक्ति पतिष्ठित श्रृंगारिक कवि बिहारी के दोहे से लिया गया है। पंक्ति के माध्यम से कवि अपनी पीड़ा को हरने के लिए कृष्ण-प्रिय राधा से प्रर्थना करते हैं।
कवि बिहारी कहते हैं कि हे कृष्ण-प्रिय राधा आप तो बहुत दयालु है। आप आपना कृप्या से मेरी सारी पीड़ा को हर लीजिए। यही प्रार्थना वह राधा के माध्यम से भगवान कृष्ण तक पहुँचाने के लिए प्रार्थना करते हैं। Bihari Ke Dohe class 8th Hindi
जपमाला, छापै, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचे नाचै वृथा, साँचै रामु।
प्रस्तुत पंक्ति पतिष्ठित श्रृंगारिक कवि बिहारी के दोहे से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि पूजा-पाठ माला आदि जपने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है। जब तक मानव संसारिक मोह-माया में बँधा रहेगा तब तक वह ईश्वर से नहीं मिल सकता हैं। मानव अपना सब कुछ त्यागने के बाद ही वह जब सच्चा मन से ईश्वर को याद करेगा तभी वह ईश्वर को प्राप्त करने में सफल होगा।
बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सोहँ करैं भौं हनु हँसै, दैन कहे नटि जाइ।
प्रस्तुत पंक्तियां में रीतिकाली श्रृंगारिक कवि बिहारी के द्वारा लिखित प्रस्तुत दोहे में गोपी-प्रेम का भावपूर्ण वर्णन किया गया।
कृष्ण-प्रिय राधा कृष्णा से अपनी दिल की बात को कहने के लिए बेचैन रहती है। पर कृष्ण को मुरली बजाने से समय ही नहीं मिलती है जिसके कारण वह अपनी बात को नहीं कह पाती है। तब वह कृष्ण की मुरली को चुरा देती है। और कृष्ण से गुस्सा जैसी व्यवहार करने लगती है। वह किसी तरह कृष्ण को अपनी बात कहने के लिए प्रयास करती है।
जब-जब वै सुधि कीजियें, तब-तब सुधि जाँहि।
आँखिनु आँखि लगी रहैं, आँखे लागति नाँहि।
प्रस्तुत पंक्तियां में रीतिकालीन श्रृंगारिक कवि ‘बिहारी’ के द्वारा लिखित प्रस्तुत दोहे से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि कृष्ण के प्रिय प्रेमिका के प्रेम की बखान करते हैं। Bihari Ke Dohe class 8th Hindi
गोपीयाँ कृष्ण से इतना ज्यादा प्रेम करती है कि उनकी याद आ जाने पर वह अपनी सुध-बुध को खो बैठती है। और उनका चेहरा सामने पड़ जाने पर उनकी आँखें खुली की खुली रह जाती है। वह कृष्ण से सच्चे दिल से प्यार करती है। वह हमेशा अपने प्रेमी की चेहरा अपने आँखो के सामने देखना चाहती है। वह कृष्ण से अटूट प्यार करती है। Bihari Ke Dohe class 8th Hindi
नर की अरूनलनीर की गति एकैं करी जोय।
जेतो नीचौ हवै चलै ऊँचो होय।
प्रस्तुत पंक्तियां में रीतिकालीन श्रृंगारिक कवि ‘बिहारी’ के द्वारा लिखित प्रस्तुत दोहे से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि विनम्र व्यक्ति की विशेषता के बारे में बताते हैं।
कवि कहते हैं कि जो व्यक्ति विनम्र स्वभाव के होते हैं वे लोग बहुत ही महान होते हैं। उनके लिए सारे लोगों के ह्रदय में आदर रहता है कोई भी लोग विनम्र व्यक्ति को खराब नहीं समझते है। बल्कि उनकी विनम्रता को देख कर स्वयं को उनके जैसा बनाने की कोशिश करते हैं।
संगति सुमतिन पावही परे कुमति के धन्ध।
राखौ मेलि कपूर में हींग न होत सुगंध।
प्रस्तुत पंक्तियां में रीतिकालीन श्रृंगारिक कवि ‘बिहारी’ के द्वारा लिखित प्रस्तुत दोहे से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि व्यक्ति के बुरी आदतों के बारे में बताते हैं।
कवि कहते है कि जिन लोगों की आदतें खराब हो जाती है। वह कितना भी अच्छे लोगों के साथ रहेगा तभी भी उसका आदत ठीक नहीं होगी। जैसे हींग कपूर के साथ रहता हैं तभी भी वह अपना गुण नहीं छोड़ता दुर्गंधयुक्त ही रहता है। उसी प्रकार किसी भी चिज की लत होती है जो लग जाने पर ठीक नहीं होती है। हर कोई अपनी आदत से मजबूर होता है। जिस कारण उस पर अच्छी सलाह का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
बड़े न हूजै गुनन बिनु, बिरद बड़ाई पाया।
कहत धतूरे सो कनक, गहनो गढ़यो न जाया।
प्रस्तुत पंक्तियां में रीतिकालीन श्रृंगारिक कवि ‘बिहारी’ के द्वारा लिखित प्रस्तुत दोहे से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि गुण की विशेषता के बारे में बताते हैं।
कवि कहते हैं कि बिना गुण के कोई व्यक्ति महान नहीं बन सकता है। गुण के कारण ही कोई भी मानव इस पृथ्वी पर महान बन पाया है। झुठी प्रशंसा से किसी को सम्मान नहीं मिलती है। सम्मान पाने के लिए व्यक्ति में वैसा गुण होना चाहिए। धतूरे का एक नाम कनक होता है तथा कनक के अर्थ सोना एवं धतूरा दोनों होता है। लेकिन जेबर या आभूषण सोना से ही बनता है, धतूरा से नहीं संसार वैसे व्यक्ति को ही सम्मान देती है। जिसमें कोई गुण होता है।
दीरघ साँसन लेहु दुख,सुख साई हिन भूल।
दई-दई क्यौं करतू है, दई दई सु कबूलि।
प्रस्तुत पंक्तियां में रीतिकालीन श्रृंगारिक कवि ‘बिहारी’ के द्वारा लिखित प्रस्तुत दोहे से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि मानव को दुःख और सुख में एक जैसा रहने के बारे में सिख देते हैं।
कवि मानव को कहते हैं कि सुख या दुःख दोनों ही स्थिति में एक समान रहना चाहिए। दुःख पड़ने पर न तो मनुष्य को आवश्यकता से ज्यादा दुःखी होनी चाहिए और न ही सुख मिलने पर अधिक उतलाना चाहिए। सुख-दुख जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। इन्ही दो पहिए की गाड़ी से जीवन की सच्चाई का पता चलता है।
Bihari Ke Dohe class 8th Hindi
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