इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 हिंदी पद्य भाग के पाठ पाँच ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ (Main Neer Bhari Dukh ki Badli class 9 Hindi) के अर्थ को पढ़ेंगे।
17. मैं नीर भरी दुख की बदली
लेखक- महादेवी वर्मा
जन्म :- सन् 1907 में उत्तरप्रदेश के फरुखाबाद शहर में हुआ था।
निधन :- 1987 ई. में उनका देहांत हो गया।
शिक्षा :- उनकी शिक्षा-दीक्षा प्रयाग में हुई। महादेवी जी छायावाद के प्रमुख कवियों में एक थी।
पुरस्कार :- महादेवी वर्मा को साहित्य अकादमी,भारत भारती एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया।
प्रमुख रचनाएँ :- ‘निहार ’, ‘राशिम ’, ‘यामा ’, ‘दीपशिखा ’, उनके प्रमुख काव्य हैं।
गद्द रचनाएँ :- ‘ अतीत के चलचित्र ’, ‘ स्मृति की रेखाएँ’, ‘ पथ के साथी’, ‘श्रृंखला की कड़ियां’ आदि।
श्लोक -1
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली !
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्ति विरह की गायिका कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा लिखित कविता ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ शीर्षक पाठ से ली गई है। इसमे कवयित्री ने विरह वेदना की दशा में बड़ा ही मार्मिक वर्णन किए हैं।
इस पंक्तियों के माध्यम से कवयीत्री स्वयं को वर्षा कालीन में गुमान करती है। मैं तो दुख की बादलों से घिरी हुई। बादलों को घेरना उसी प्रकार है। जिस प्रकार मेरे जीवन में इस दु:ख और वेदना है।
कवयीत्री कहती है कि अभाव से उत्पन्न दु:ख अति प्रिय होता है। क्योंकि इससे प्रेमी के प्रति प्रेम दृढ़ होता है। विरही अपनी वेदना रूपी आँसू से प्रेम रूपी बोली को सिंचित रहती है। जिससे प्रेमी की याद दीपक के समान आँखों में जलती रहती है, साथ ही आँसू के गिरने से मन हल्का हो जाता है, और कवयीत्री अपने अंदर एक अलैंगिक शांति का अनुभव करती है।
पाठ –17
श्लोक –2
मेरा पग-पग संगीत भरा ,
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा ,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल ,
छाया में मलय-बयार पली !
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ विरह की गायिका कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा लिखित कविता ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ शीर्षक पाठ से ली गई है। इसमे कवयित्री ने वेदना की दशा का वर्णन किया हैं। Main Neer Bhari Dukh ki Badli class 9 Hindi
कविता के इस पंक्तियों के माध्यम कवयित्री कहती हैं की वेदना की इस दशा में उसके हर कदम संगीतमय हो गए हैं। उसकी सांसों से कल्पना रूपी पुष्प की धूलि धरती प्रतीत होती है।तो आकाश उसके दुपट्टे के सामने नए-नए रंग उपस्थित कर रहा है। कवयीत्री के कहने का भव यह है कि वह अपने प्रियतम से मिलने के लिए किस प्रकार सज धज जाना चाहती है। कि उसका प्रीयतम सहजाता के साथ उसे स्वीकार कर ले। इस प्रकार मिलन की व्यग्रता के कारण कवयीत्री के मन में तरह तरह भाव उठते हैं।
श्लोक -4
मैं क्षितिज-भृकुटी पर घिर धूमिल ,
चिंता का भार बनी अविरल ,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी
नव जीवन-अंकुर बन निकली !
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ विरह की गायिका कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा लिखित कविता ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ शीर्षक पाठ से ली गई है। इसमे कवयित्री ने वेदना की चरमवस्या का वर्णन किया हैं।
कवयीत्री का कहना है कि वेदना की ज्वाला जितनी तीव्र होती जाती है, उसकी आँखों से अश्रुजल जीतने गिरते जाते हैं, उसकी भावना उतना ही परिपूस्ट होती जाती हैं। तत्पर्य की कवित्री के प्रेमी-मिलन की लालसा लगातार बढ़ती जाती है। इसलिए कवयीत्री अपने आंसुओं की तुलना बदली से करती हुई जो बताना चाहती है कि जिस प्रकार बदली जल पूर्ण होकर सारे आकाश में छा जाती है, और जल वर्षा कर सारे विश्व को नया जीवन प्रदान करती है, उसी प्रकार कवयीत्री वेदना का भार सहन करती हुई अपने करुणा जल से सबको नया जीवन प्रदान करना चाहती है।
श्लोक –3
पथ को न मलिन करता आना,
पद-चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिहरन हो अंत खिली !
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ विरह की गायिका कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा लिखित कविता ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ शीर्षक पाठ से ली गई है।
इस पंक्तियों के माध्यम से कवयीत्री ने अपने अज्ञात प्रीयतम से आग्रह किया है, कि वह इस प्रकार आए उसका प्रेम पथन मलीन होने पाए और ना ही अपना पद चीन्ह छोड़े ताकी कवयीत्री की अनंत में समाहित होने की भावना क्षीण न हो। कवयीत्री का मानना है, कि तृप्ति मिलने ही व्यक्ति का प्रयास मंद हो जाता है, इसलिए कवयित्री चाहती है, कि उसकी वेदना उसे सतत कर्मपथ पर अग्रसर रखें। साथ ही कवयीत्री यह भी चाहती है, कि संसार में उसकी याद करके लोग आनंद का अनुभव करें।
श्लोक -5
विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही ,
उमड़ी कल थी मिट आज चली !
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ विरह की गायिका कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा लिखित कविता ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ शीर्षक पाठ से ली गई है। इसमे कवयित्री ने अस्तित्वहीन बनकर रहने की इच्छा प्रकट की हैं।
कवयीत्री का कहना है, कि वह संसार से किसी प्रकार का अपेक्षा नहीं रखती। वह मात्र वेदना की गायिका के रूप में अपना इतिहास रचना चाहती है, परंतु यह विचार भी क्षण भर में लुप्त हो जाते हैं।क्योंकि वह तो नीर भरी दुख बदली बनकर रहना चाहती है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है, कि कवयीत्री अपने वेदना के माध्यम से असीम के समाहित होना चाहती है। उसमें मिलने के बाद व्यक्ति अस्तित्वहीन हो जाता है,और उसकी स्मृति ही शेष रह जाती है। Main Neer Bhari Dukh ki Badli class 9 Hindi
Read class 9th Hindi – Click here
Watch video – Click here
Sourav Kumar says
The site is very good.