इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 हिंदी के पाठ बीस ‘झाँसी की रानी’ (Jhansi Ki Rani poem class 8 Hindi) के अर्थ को पढ़ेंगे। जिसके लेखिका श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान है।
20 झाँसी की रानी
प्रस्तुत कविता ‘झाँसी की रानी’ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित यह काव्य-रचना भारत की आजादी की लड़ाई की गौर व गाथा है। सन् 1857 में भारत की आजादी के लिए देश के अनेक क्षेत्रो में बिगुल बज उठा था। भारत वर्ष के लोग आजादी के लिए कमर कसकर तैयार हो रहे थे, क्योंकि उन्होंने आजादी की कीमत पहचान ली थी पराधीनता में जीना उन्हें पसंद नही था आम भारतीयों की जुबान पर बसी यह कविता प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम की याद दिलाती है।
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुती तानी थी।
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी।
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी।
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
प्रस्तुत कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक कविता से लिया गया है। जिसके रचनाकार सुभद्रा कुमारी चौहान है।
जब भारतीय राजघराने वालों ने अपनी स्वतंत्रता के लिए ठानी तो उस समय अंग्रेजो का राजसिंहासन डगमगा उठा था। एक बार फिर भारत मे नई जवानी आ गई थी। एक-एक भारतवासी ने अपनी खोई स्वतंत्रता की कीमत जान ली थी और वह विदेशियों को देश में नहीं रहने देना चाह रहे थे। ये लोग फिरंगियों को देश से भागने का निश्चय कर लिया था। Jhansi Ki Rani poem class 8 Hindi
सन् 1857 में भारतवासियों की पुरानी तलवार चमक उठी और अंग्रेजों के विरूद्ध लड़ने के लिए वे तैयार हो गए थे। कवयित्री कहती है। कि हमने बुंदेलखण्ड के भांटों (हरबोलो) से यह कहानी सुनी थी। झाँसी की रानी वीर मर्दो की तरह अंग्रेजों के विरूद्ध खूब लड़ी थी।
चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक कविता से लिया गया है। जिसके रचनाकार सुभद्रा कुमारी चौहान है।
इन पंक्ति में कवयित्री कह रही है कि सन् 1857 में भारतवासियों की पुरानी तलवार चमक उठी और अंग्रेजो के विरूद्ध लड़ने के लिए वे तैयार हो गए थे। कवयित्री कहती है कि हमने बुंदेखण्ड के भांटों (हरबोलो ) से यह कहानी सुनी थी। झाँसी की रानी वीर मर्दों की तरह अंग्रेजों के विरूध्द खूब लड़ी थी
कानपुर के नाना की मुँहलोली बहन छबीली थी
लक्ष्मीबाई नाम पिता का वह संतान अकेली थी।
नाना के संग पढती थी वह, नाना के संग खेली थी।
बरछी, ढ़ाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथाएँ उसके याद जबानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवयित्री रानी लक्ष्मीबाई के विशेषता के बारें में बताती है। वह कहती है कि झाँसी की रानी के बचपन का नाम लक्ष्मीबाई था और वह अपने पिता कि अकेली सन्तान थी वह कानपुर के नाना साहब की मुँहबोली प्यारी बहन थी। नाना के साथ ही पढ़ती-लिखती और खेलती थी बरछी, ढ़ाल, तलवार, कटार आदि युद्ध की सामग्री ही उसकी सहेली थी।
लक्ष्मीबाई को वीरशिरोमणि शिवाजी की कहानियाँ जबानी याद थी कवयित्री कहती है की यह कहानी हमने बुंदेलखड के भांटो-चारणें के मुँह से सुनी थी झाँसी की रानी लक्ष्मी-बाई मर्दो की तरह अंग्रेजों से युद्ध करती थी। Jhansi Ki Rani poem class 8 Hindi
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों की वार,
नकली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना खूब बशिकार
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवाड़
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी।
बुंदेलो हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवयित्री लक्ष्मीबाई की वीरता के विशेषता के बारें में बताती है। उन्हें लक्ष्मी कहा जाए की दुर्गा यह बाद की बात है, किन्तु वह वीरता की साक्षात् अवतार थी। उसकी तलवार के आघातों को देखकर मराठे वीर बड़े आनंदित होते थे। नकली युद्ध लड़ना, व्यूह की रचना करना शिकार खेलना, सेना को घेरना, किला तोड़ना आदि उसके प्रिय खेल थे।
मराठों की कुल-देवी भवानी ही उसकी भी पूज्य देवी थी। कवयित्री कहती है कि बुंदेलखंड के भांटो-चारणों के मुँह से हमने यह कहानी सुनी थी। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई वीर मर्दो की तरह अंग्रेजों से खूब लड़ी थी।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में ब्याह हुआ रानी बन आई
लक्ष्मीबाई झाँसी में, राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में
सुभट बुंदेलो की विरूदावलि-सी वह आई झाँसी में
चित्रा ने अर्जुन को पाया शिव से मिली भवानी थी।
बुंदेलो हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवयित्री लक्ष्मीबाई की शादी के बारे में बताती है।
लक्ष्मीबाई की शादी झाँसी के महाराज के साथ हुई। जब वह रानी बन के झाँसी में आई तो राजमहल में बहुत रोचक तरिके से उनकी स्वागत की गई। चारों तरफ आनंद ही आनंद प्रतित हो रहा था। बुंदेलखंड के महान् वीरो की पराक्रम-गाथा की तरह वह झाँसी में आई।
जिस प्रकार चित्रांगदा और अर्जुन का मिलन हुआ अथवा शिव और पार्वती की मिलन हुआ उसी प्रकार झाँसी के राजा के साथ लक्ष्मीबाई का मिलन हुआ। कवयित्री कहती हैं कि यह कहानी हमने बुंदेलखंड के भांटो चारणों के मुँह से सुनी थी। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई वीर मर्दो को तरह अंग्रंजों के साथ खूब लड़ी। Jhansi Ki Rani poem class 8 Hindi
अदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किन्तु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलानेवाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई हाय! विवि को भी नहीं दया आई
निःसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी।
बुंदेलो हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस कविता के माध्यम से कवयित्री लक्ष्मीबाई के बारे में बताती है।
कवयित्री कहती है कि लक्ष्मीबाई झाँसी के राजमहल में वधू बनकर क्या आई मानो वहाँ सौभाग्य का ही उदय हो गया। महलों में चारों तरफ खुशियाँ छा गई। किंतु कुछ समय बाद महाराज की मृत्यु हो गई तथा रानी विधवा बन गई। ईश्वर को भी उन पर दया नहीं आई।
अभी लक्ष्मीबाई को एक भी संतान भी नहीं हुई थी। तभी उनकी पति की मृत्यु हो जाती है। कवयित्री कहती है कि यह कहानी हमने बुंदेलखंड के भांटो-चारणों के मुँह से सुनी थी। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई वीर मर्दो की तरह अंग्रेजों के साथ खूब लड़ी थी।
बुझा दीप झाँसी तब डलहौजी मन में हरषाया
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया
फौरन फौजें भेज दर्ग पर अपना झंडा फहराया
लावासिल का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया,
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी।
बुंदेलो हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवयित्री रानी लक्ष्मीबाई के जिन्दगी के बारे में बताती है।
जब झाँसी का दीप बुझ गया, अर्थात् राजा की मृत्यु हो गयी, तब तत्कालीन गवर्नल जनरल लार्ड डलहौजी मन ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ। उसे झाँसी का राज्य हड़प लेने का अच्छा अवसर हाथ लग गया। उसने तुरंत सेना भेजकर झाँसी के किले पर अपना झंडा फहरा दिया। इस प्रकार उत्तराधिकारी-हीन राज्य का उत्तराधिकारी बनकर अंग्रेजों राज्य झाँसी में आ गया।
महारानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी के राजमहल को आँसू भरी आँखों से देखा क्योंकि झाँसी अब वो पराई बन गई थी। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बड़ी वीरता के साथ अंग्रेजों से युद्ध किया था। Jhansi Ki Rani poem class 8 Hindi
छिनी राजधानी देहली की, लिया लखनऊ बातों-बात
कैद पेशवा था बिठूर में हुआ नागपुर पर भी घात,
उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक की कौन विसात,
जब कि सिन्धु, पंजाब ब्रहत पर अभी हुआ था बज्र-निपात,
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी।
बुंदेलो हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवयित्री कहती हैं कि झाँसी तो अंग्रेजों के अधीन हो ही गयी दिल्ली और लखनऊ भी उनके ही कब्जे में चलें गए थे। इधर बिठुर में पेशवा को भी कैद कर लिया गया तथा नागपुर पर भी आक्रमण हुआ उदयपुर, तंजोर, सतारा, कर्नाटक की तो कोई शक्ति ही नहीं भी सिन्ध पंजाब, वर्मा जैसे शक्तिशाली राज्यों पर भी बज्र गिरा। अर्थात इन सबों पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।
इतना ही नही बंगाल और मद्रास के साथ भी यही बात हुई। कवयित्री कहती है कि बुंदेलखड़ के भारों-चारणों के मुँह से हमने यह कहानी सुनी थी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बड़ी वीरता के साथ अंग्रेजो से युद्ध किया था।
इनकी गाथा छोड़ चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में
लैफ्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद असमानों में,
जख्मी होकर वॉकर भागा उसे अजब हैरानी थी।
बुंदेलो हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है।
झाँसी के मैदान में रानी लक्ष्मीबाई एक वीर पुरूष की तरह युद्ध करने के लिए खड़ी थी। तभी लैफ्टिनेंट वॉकर आता है। अपने सैनिकों के साथ युद्ध करने के लिए दोनों के बीच बहुत ही ज्यादा युद्ध होता है तथा रानी लक्ष्मीबाई ने बहुत जल्द ही सारे जवानों को मार देती है।
वॉकर भी घायल हो जाता है उसे ऐसी स्त्री के वीरता को देखकर वह हैरान रह जाता है। कवयित्री कहती हैं कि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बड़ी वीरता के साथ अंग्रजों से लड़ी थी।
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थककर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना-तंट पर अंग्रेजों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार,
अंग्रेजो के मित्र सिन्धया ने छोड़ी राजधानी थी।
बुंदेलो हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवयित्री रानी लक्ष्मीबाई के वीरता के विशेषता के बारें में बताती है।
वह कहती है कि रानी लगातार सौ मिल की दूरी तय कर कालपी आई उनका घोड़ा इतनी लम्बी दूरी तय करने के कारण थककर जमीन पर गिर गया और उसी क्षण उसकी मृत्यु हो गई। वहीं यमुना फिर युद्ध हुई तथा वहाँ भी अंग्रेजी हार गए। वहाँ विजय पाने के बाद रानी आगे की ओर बढ़ी और ग्वालियर पर अधिकार कर लिया।
अंग्रेजो का मित्र सिंधिया अपनी राजधानी छोड़कर भाग गया। कवयित्री कहती हैं कि बुंदेलखंड के भांटो-चारणों से हमने यह कहानी सुनी थी। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बड़ी वीरता के साथ अंग्रेजो से युद्ध किया था।
विजय मिली, पर अंग्रेजी की फिर सेना घिर आई थी।
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था उसने मुँह की रवाई थी।
काना और मुंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी।
युद्ध क्षेत्र में उन दोनो ने भारी मार मचाई थी।
पर, पीछे ह्यूरोज आ गया हाथ! घिरी अब रानी थी।
बुंदेलो हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पंक्ति मे कवयित्री कहती है। कि रानी को विजय तो मिली, किन्तु अंग्रेजो की सेना ने उन्हे फिर से घेर लिया। इस बार जनरल स्मिथ रानी के सामने आया। उसे भी हारना पड़ा रानी की दो सहेलियाँ काना और मुंदरा भी उनके साथ आई थीं। लड़ाई के मैदान में उन दोनों ने भी बड़ी मार-काट मचाई।
इसी बीच वहाँ हृरोज आ गया अफसोस अब रानी बुरी तरह घिर गई थी कवयित्री कहती हैं कि बुंदेलखंड के भांटो-चारणों से हमने यह कहानी सुनी थी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बड़ी वीरता के साथ अंग्रेजों से युद्ध किया था।
तो भी रानी मार-काटकर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था यह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा नया घोड़ा था इतने में आ गए सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे होने लगे वार-पर-वार,
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर-गति पानी थी।
बुंदेले हरवोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है इस पंक्ति के माध्यम से कवयित्री यहाँ बताती हैं। कि रानी लक्ष्मीबाई जब यूद्ध क्षेत्र में आए सभी सैनिको को मार कर आगे बढ़ती है। तभी सामने नाला आ जाता वह बहुत बड़ी संटक बन जाती हैं घोंड़ा वही थक कर गिर जाता है। इसी बीच अंग्रजी सेना वहाँ पहुँच गई रानी अकेली थी और शत्रु बहुत-से थे, फिर भी रानी भयंकर युद्ध करने लगी। Jhansi Ki Rani poem class 8 Hindi
सिंहनी के समान वीर रानी बुरी तरह धायल होकर गिर पड़ी। उन्हे वीरगाति तो मिलगी ही थी कवयित्री कहती है कि यह कहानी हमने बुंदेलखंड के भांटो-चारणो से सुनी थी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बड़ी वीरता के साथ अंग्रेजो से युद्ध किया था।
रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेईस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी,
दिखा गई पथ सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी।
बुंदेले हरवोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखित कविता ‘झाँसी की रानी’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पंक्ति मे कवयित्री कहती है। कि रानी लक्ष्मीबाई बहुत ही कुछ सिखा के इस दुनिया से चली गई। अर्थात् रानी शहीद हो गई अब चिता ही उसकी स्वर्गीय सवारी थी। चिता की अग्नि के तेज के साथ रानी का तेज मिल गया। रानी उस तेज की वास्तविक अधिकारिणी थी। रानी की आयु अभी कुल तेईस वर्ष की ही थी। निश्चय ही वह मनुष्य नहीं शक्ति और वीरता की साक्षात् अवतार थी। लगता है जैसे वह नारी रूप में स्वयं स्वतंत्रता देवी हमें नवजीवन देने आई थी।
रानी स्वयं तो चली गई, किन्तु हमें वीरता और बलिदान की राह दिखा गई, हमें उसे जो शिक्षा देनी थी वह दे गई। कवयित्री कहत थी कवयित्री कहती है कि यह कहानी हमने बुंदेलखंड के भांटो-चारणो से सुनी थी झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बड़ी वीरता के साथ अंग्रेजो से युद्ध किया था।
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