इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 हिंदी के पाठ ग्यारह ‘सुखी नदी का पूल’ (Sukhi Nadi ka Pul class 9 Hindi) के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे। जिसके लेखक रामधारी सिंह दिवाकर है।
11. सुखी नदी का पूल
लेखक- रामधारी सिंह दिवाकर
जन्म :- 1 जनवरी 1945 ई. में नरपतगंज, अररिया (बिहार ) में हुआ था।
शिक्षा :- प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण माहौल में ही हुई। उन्होंने उच्च शिक्षा बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर और भागलपुर विश्वविद्यालय,भागलपुर से प्राप्त की। उन्होंने हिंदी में एम.ए. और पी-एच.डी. की डिग्री प्राप्त की।
रामधारी सिंह दिवाकर :- मुख्य रूप से एक कथाकर थे।
रचनाएँ :- ‘ नए गाँव में ‘, ‘ अलग – अलग अपरिचय ‘, ‘ बिच से टुटा हुआ ‘, ‘ नया घर चढ़े ‘, ‘सरहद के पार ‘, ‘ धरातल ‘, ‘ मखान पोखर ‘, ‘ माटी पानी ‘, आदि की कहानियाँ हैं।
उपन्यास :- ‘क्या घर क्या प्रदेश’,’ काली सुबह का सूरज’, ‘ पंचमी तत्पुरुष’, ‘आग पानी और आकाश ‘।
पाठ – 11
सुखी नदी का पूल
प्रस्तुत पाठ “सुखी नदी का पुल ” एक कहानी है। जो एक महान लेखक रामधारी सिंह दिवाकर के द्वारा लिखा गया है। इस पाठ में गाँव के सामाजिक ताने-बाने में आए बदलाव के बारे में बताया गया है। जिसमें उत्तर बिहार के गाँव के बदलते हुए स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। लीलावती को इस कहानी की नायिका कह सकते हैं। और कहानी उसी के ईद – गिर्द घूमती नजर आती है। Sukhi Nadi ka Pul class 9 Hindi
लीलावती मुंबई जैसे बड़े महानगर में रहती है। वह अपने गाँव आती है यह सोच कर कि गाँव- गाँव जैसा होगा। जैसे ही वह स्टेशन से बाहर आती है तो बाहर बैलगाड़ी की जगह जीप देखकर आश्चर्यचकित होती है। उसके मन में ठेस से लगती है। गाँव के बदलते हुए स्वरूप को देख कर चौक जाती है। अपने खादी पहनने वाली भाई की जेब मे पिस्तौल देखती है। भाई कहता है समय ही ऐसा आ गया बच्चों को अपनी सुरक्षा के लिए यह सब रखना पड़ता है। गाँव पहले वाला गाँव नहीं रहा जब से आरक्षण लागू हुआ है,बैंक वार्ड, फॉरवर्ड की दुर्भावना पूरी तरह फैल गई है गांव में जातियों के अलग-अलग संगठन हो गए हैं। निजी सेनाएं हो गई है।
लीलावती यह सब सुनकर सन्न रह गई। गाँव की वातावरण जो मेल-जोल से जीवन यापन करता था,सभी एक दूसरे के भाई बहन थे, वह सब एक दूसरे के जान के दुश्मन बने हुए हैं। वह इन तेरह – चौदह वर्षों में गांव के बदले हुए स्वरूप पर अचरज करती है।
लीलावती की कन्यादान में मिली हुई जमीन पर लीलावती की सहेलियाँ माय का बेटा कलेसर ने दावा ठोक दिया था जिससे गाँव दो भाग हो गया था। लीलावती ने इस विवाद का हल करते हुए जमीन की रजिस्ट्री अपने सहेलियाँ माय माँ के नाम कर दी जब जीप दरवाजे पर लगी तो लीलावती देखती है कि एकदम बदल गया है घर – दुआर खपरैल की जगह पक्के का मकान घर दरवाजे पर जीप, ट्रैक्टर,थ्रेसर,मशीन और जनरेटर बिजली के पोल गाँव तक आ गए हैं,फोन, फ्रीज, टीवी,बीसीपी सब कुछ। लीलावती यह सब नहीं देखने आई थी। वह पहले वाली सुविधाओं के लिए तरस रही थी। सखी सहेलियाँ, नदी,पोखर, खेत, खलियान टोले- पगदण्डिया नाथे बाबा का थान्ह,राजा सलेश का गहबर बूड़िया वाली बरहर बाबा का मंदिर, कैसे कहें की क्या देखना चाहती। लीलावती ने अपना कर्ज उतारने के लिए जमीन की रजिस्ट्री सहेलियाँ माय के नाम कर दोनो टोले खावास टोली और बबुआन टोली में मेल – मिलाप करवा देती है।
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