इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 हिंदी के पाठ बाइस ‘सुदामा चरित’ (Sudama Charit class 8 Hindi) के अर्थ को पढ़ेंगे। जिसके लेखक नरोत्तमदास है।
22 सुदामा चरित
प्र्रस्तुत पाठ ‘सुदामा चरित’ एक कविता है। जिस के लेखक नरोत्तमदास के द्वारा लिखा गया है। इस कविता में कवि सुदामा और कृष्ण बाल-सखा थे सुदामा और कृष्ण बाल-सखा थे सुदामा अति दीन यानी (गरिब) थे। भिक्षा माँगकर भोजन करते थे और हरि-भजन में लीन रहते थे उनकी पत्नी को अपनी दरिद्रता पर बड़ा क्षोभ होता था। उन्होंने दरिद्रता दूर करानें के लिए सुदामा को द्वारिकाधीरा श्री कृष्ण के पास जाने को विवश कर दिया था।
सीस पगा न झगा तन में, प्रभु जानै को आहि बसै के ही ग्रामा
धोती फटी-सी लटी दुपटी अरू पाँय उपानह की नहिं सामा
द्वारा खड़ो द्रिज दुर्बल देखि रहतौ चकि सो वसुधा अभिरामा
पूछत दीनदयाल को धामु बतावत आपनो नाम सुदामा
प्रस्तुत कविता ‘सुदामा चरित’ शीर्षक पाठ से यह पंक्तियाँ लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि सुदामा जी के गरीबी के बारे में बताते है।
सुदामा पत्नी के हठ करने पर अपने बाल-सखा श्री कृष्ण के पास आर्थिक सहायता के लिए द्वार का जाते है द्वार का के ऊँचे-नीचे महल समृद्धि तथा ऐश्वर्य देख वे भौचक्का रह जाते है अपने बचपन के साथी श्री कृष्ण के महल के द्वार पर पहुँचकर द्वारपाल को श्री कृष्ण के पास ले चलने का आग्रह करते है उनकी फटेहाल दशा देखकर द्वारपाल महल में प्रवेश तो नहीं करने देता परन्तु उनके आने की सूचना श्री कृष्ण को बताते हुए कहता है-प्रभु द्वार पर एक आदमी खड़ा है जो अति निर्धन-सा प्रतीत होता है क्यों कि उसके शरीर पर ठीक से वस्त्र भी नही है और न साथ में कोई समान ही है वह शरीर से बहुत दुर्बल है। Sudama Charit class 8 Hindi
बोल्यो द्वारपालक सुदामा नाम पांड़े सुनी
छाँड़े राजकाज ऐसे जी की गति जाने को
द्वारका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पाँय
भेंटे भरि अंक लपटाय दुख साने को
नैने दोऊ जल भरि पूछत कुसल हरि
विप्र बोल्यो विपदा मेंं मोहि पहिचानें को
जैसे तुम करी तैसी करै को दया के सिन्धु
ऐसी प्रीति दीनबन्धु दीनन सों भाने को
प्रस्तूत पंक्तियाँ कृष्णभक्ति शाखा के कवि नरोत्तम दास द्वारा लिखित कविता ‘सुदामा-चरित’ शीर्षक कविता से लिया गया है इनमें कवि ने सुदामा की दीन-दशा का वर्णन किया है।
कवि कहते है। कि जैसे ही द्वारपाल कृष्ण के सामने सुदामा पांड़े नाम रखा है वह सारी कार्य को छोड़कर खाली पैर ही दौड़ जाते है कृष्ण को ऐसा लगा की उनकी खोई हुई कुछ वस्तु मिल गई हो।
तथा वह सुदामा जी को गले से लगा लेते है और बोलते है कि हे मित्र तुम्हारी ये हालत हो गई है और तुम मुझे एक बार बताया तक नहीं है उनकी दोनों आँखों में आँसू भर आए और वे सुदामा से कुशल हाल -पूछने लगे ब्राहतण सुदामा बोले की विपत्ति में आपके सिवा और कौन पहचान सकता है़? हे दया के सागर जो व्यवहार आपने किया वैसा कौन कर सकता है? दीन-दुखियों से ऐसा प्रेम कौन करता है। आप बहुत महान है। प्रभु आपके जैसा कोई नहीं है।
एसे बिहाल बिवाइन सों पग, कंटक-जल लगे पुनि जोये,
हाय! महादुख पायो सखा। तुम आये इतै न, कितै दिन खोये,
देखि सुदामा की दीन दसा, करूना करिकै करूनानिधि रोय,
पानि परात को हाथ छुयो नहिं नैनन के जल सों पग धोये,
प्रस्तूत पंक्तियाँ कृष्णभक्ति शाखा के कवि नरोत्तम दास द्वारा लिखित कविता ‘सुदामा-चरित’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इनमें कवि सुदामा जी जब कृष्ण के राजमहल में पहुँचते है। तो कृष्ण उनके साथ कैसा व्यवहार करते है। इसके बारे में बताते है। कवि कहते है कि सुदामा के नाम सुनते ही श्री कृष्ण नंगें पाँव अपने बाल सखा से मिलने दौड़ पड़ते हैं और आदरपूर्वक गले लगाते हुए द्रवित हो जाते हैं। उन्हें सिंहासन पर बिठाकर स्वयं अपने हाथ से उनके पैर धोने लगते हैं। पैरों में चुभे काँटे देखकर श्री कृष्ण दुःखी हो जाते हैं। और तब मित्र सुदामा से पूछते है मित्र! तुम इतने दिनों तक कहाँ थे, इधर क्यों नहीं आए। कवि कहते है कि सुदामा की ऐसी दुर्गति देखकर करूणा के सागर श्री कृष्ण के आँसू निकल पड़ते है और परात का पानी छुए बिना अपने अश्रुजल से ही वे मित्र के पैर धो देते हैं।
आगे चना गुरू मात दिये, ते लये तुम चावि, हमें नहिं दीने,
स्याम कह्यो मुसकाय सुदामा सौ, चारी की बानि में हौं जु प्रबीने,
गाँठरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा रस भीने,
पाछिली बानि अजौं न तजौं तुम, तैसेई भाभी के तन्दुल कीने,
प्रस्तूत पंक्तियाँ कृष्णभक्ति शाखा के कवि नरोत्तम दास द्वारा लिखित कविता ‘सुदामा-चरित’ शीर्षक पाठ से उध्द्त है। इनमें कवि सुदामा जी की बचपन के बात बताया करते है।
भेंट के लिए सुदामा जी की पत्नी जो चावल दी रहती है। उसे वह नहीं देते है। लाज के कारण पर कृष्ण जी वह देख लेते है और बोलते है। कि मृत्रि भाभी जो मेरे लिए भेंट स्वरूप भेजी है। उसे तुम मुझे क्यों नहीं दे रहो हो। यह तुम्हारी पुरानी आदत है तुम पहले भी इसी तरह जब गुरू माता चना देती थी तो तुम हमसे छुपा के खुद ही खा लेती थी मुझे नहीं देते थे।
वैसोई राज समाज बनै, गज-बाजि घने, मन संभ्रम छायौ।
कैधों परयौं कहुँ मारगा भूलि कें, कै अब फेरि मैं द्वारिका आयौ।
भौन बिलोकिबे को मन लोचत, सोचते ही सब गाँव मँझायौ।
पूछत पाँड़े फिरें सबसों पर, झोपरि को कहुँ खोजु न पायौ।
प्रस्तूत पंक्तियाँ कृष्णभक्ति शाखा के कवि नरोत्तम दास द्वारा लिखित कविता ‘सुदामा-चरित’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इन पंक्ति के माध्यम से कवि सुदामा जी के गरीबी के बारे मे बताते है।
कवि कहते है। कि श्री कृष्ण ने सुदामा को प्रत्यक्ष रूप में तो कुछ नहीं दिए थे। सुदामा खाली हाथ ही द्वारका से लौटे थे। पर कृष्ण अपनी शक्ति से उनकों गाँव पहुँचने से पहले ही उनकी पत्नी, बच्चे तथा वहाँ रहने वाले लोगों की भी धन-दौलत से पूरी तरह भर दिए। जब सुदामा जी अपने गाँव लौटे तो वह उस गाँव को तथा वहाँ की कोई भी वस्तु आदि को नहीं पहचान पा रहे थे। चारों-ही चारों तरफ द्वारका जैसे महल आदि दिख रहे थे। जब वह जाने के यह सब कृष्ण जी किय है। तो वह उनको प्रणाम करने लगे वह खुशी से फूले नहीं समा रहे थे।
कै वह टूटी सी छानी हुती, कहँ कंचन के सब धाम सुहावत।
कै पग में पनही न हुतीं, कहँ लै गजराजहु ठाढ़े महावत।।
भूमि कठोर पै रात कटै, कहँ कोमल सेज पै नींद न आवत।
कै जुरतो नहिं कोदो सवाँ, प्रभु के परताप में दाख न भावत।।
प्रस्तूत पंक्तियाँ कृष्णभक्ति शाखा के कवि नरोत्तम दास द्वारा लिखित कविता ‘सुदामा-चरित’ शीर्षक कविता से लिया गया है इनमें कवि ने दीन-दशा का वर्णन किया है। इस पंक्ति में कवि ने यह स्पष्ट करना चाहा है कि जब व्यक्ति का समय बदल जाता है तों उसके रहन-सहन आदि में तथा खान-पान सब में परिवर्तन हो जाता है।Sudama Charit class 8 Hindi
यहाँ कवि ने सुदामा के संबंध में कहाँ है कि सुदामा अति निर्धन ब्राह्मण थे। वह टूटी झोपड़ी में रहते थे, कोदो यादि खाने में प्रयोग करते थें, कठोर भूमि पर सोकर रात काटते थे। पर श्री कृष्ण के कृपा से सब कुछ बदल गया। वह अब पहले जैसा नहिं थें उनकी घर महल जैसा हो गया था। सारी प्रकार की सुविधाएँ उनकी पास अब हो गई थी।
धन्य धन्य जदुवंश-मानि, दीनन पै अनुकूल।
धन्य सुदामा सहित तिय, कहि बरसहिं सुर फूल
कवि ने इन पंक्तियों के माध्यम से यह बताते है कि जिस पर प्रभु की दया होती है उसके जीवन धन्य हो जाता है। उसे सारे ऐश्वर्य स्वतः मिल जाते हैं, लेकिन इसके लिए सुदामा जैसा अगाध प्रेम होना भी आवश्यक है, जिन्होंने दीनता की दशा में भी अपना मुँह नहीं खोला।
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Sudama Charit class 8 Hindi
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