इस पोस्ट में हमलोग झारखण्ड बोर्ड के हिन्दी के पद्य भाग के पाठ पंद्रह ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कक्षा 10 हिंदी’ (JAC board class 10 Hindi Stri shiksha ke virodhi) के व्याख्या को पढ़ेंगे।
15.स्त्री-शिक्षा के विरोधी
कुतर्को का खंडन (महावीर प्रसाद द्विवेदी)
जब बहुत से पढ़े लिखे लोगो द्वारा ये सुना जाता है कि स्त्री को शिक्षा नही देनी चाहिए तो लेखक दुःखी हो जाता है। इन पढे-लिखे लोगो मे वो शामिल हैं जो धर्म-शास्त्रो के ज्ञाता, शिक्षक, विचारक, समार्गगामी, पथप्रदर्शक, (यानी जो धर्म और शास्त्रो को जानता हो किसी को पढा़ता हो किसी लोगो को समझाता हो अच्छे रास्ते पर चलना काम करना बताता हो तथा अच्छे काम के साथ पढे-लोगो का उदाहरण देते हा) हैं।
ये लोगो का मानना है कि स्त्रियो को शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे द्विवेदी जी को बहुत बुरा लगता है। लेखक का कहना है कि संस्कृत के नाटक (सिरियल) में पढ़ी-लिखी स्त्रियों को गँवारो की भाषा का प्रयोग करते देखा गया है। (पुराने सिरियल) स्त्रियों को शिक्षा देना अनर्थ मानते थे इसलिए कि जब वह घर से बाहर निकलेगी तो बिगड़ जाएगी। इसी कारण से संकुतला को दुष्यंत कठोर शब्द कहे हैं। पढ़े लिखे विद्वानो का मानना है स्त्रियों को शिक्षा नही देना चाहिए। ये विद्वानों का कहना गलत हैं। क्या पढ़ी लिखी नारी क्या वो प्राचीन भाषा नहीं बोल सकती। भगवान बु़द्ध से लेकर भगवान महावीर तक सभी ने अपने-अपने उपदेश प्राकृत भाषा में ही दिए (गँवार भाषा) तो क्या वे अनपढ़ और गँवार थे। इतने सारे साहित्य के रचयिता लोग क्या गँवार ही थे।
आज भी अलग-अलग देशो के शिक्षिण व्यक्ति अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषा मराठी, बांग्ला, पंजाबी आदि में बात करता है तो क्या वह गँवार है इस सबका उत्तर नहीं है। जिस समय नाट्य-शस्त्रियों को लिखा गया था उस समय सभी लोग संस्कृ भाषा में ही बोलते थे। इसलिए सामान्य लोगो की भाषा प्राकृत रखी और पढ़े-लिखे विद्वानों की भाषा संस्कृत रखी। शास्त्रो ने बड़े-बड़े विद्वानों की चर्चा की है पर क्या उनके सीखने से जुड़े कोई किताब या पांडुलिपिं पढ़ा है जिसमें ऐसा लिखा हो कि स्त्रियों को शिक्षा नही दी जाए? ऐसा तो कही नही लिखा। क्या पहले के समय में कोई भी स्त्री (नारी) को विद्यालय की जानकारी नही मिलती तो क्या इसका मतलब यह तो नही ये गँवार थी। लेखक ने इसी कारण को जानकर बौ़द्ध कालीन स्त्रियों के बहुत से उदाहरण देकर उनके शिक्षित होने की बात करता है। कवि कहते है कि पहले के समय में स्त्रियों को नाच, गाना, फूल, चुनने, हार बनाने तक की पुरी आजादी मिली थी, तो यह बात पर विश्वास
थी लोगों को लेकिन जब बात शिक्षा की आती है तो लोगों का विश्वास कहा चला जाता है, तब भी विश्वास होना चाहिए। लेखक कहते है माना की प्राचीन काल में सभी स्त्रियों अनपढ़ थी। हो सकता है उस समय उनका पढ़ने-लिखने की जरूरत नही रही हो लेकिन आने वाले समय में तो उन्हे शिक्षा देना चाहिए। लेकिन जब आने वाले समय में कुछ समय बितने के बाद ही उन्हे शिक्षा मिली होती तो श्री मद्धगवत, दशमस्कध के उत्तरार्ध का तिरिपनवाँ अध्याय पढ़ना ये सब तो पढ़ ही पाती क्योंकि उसमें रूकिमणी-हरण की कथा है। उसमें रूकिमणी ने एक लंबा चौड़ा पत्र एकांत मे लिखकर श्री कृष्ण को भेजा था, वह तो प्राकृत में नही था। लेखक कहते है कि अनर्थ कभी नहीं पढ़ना चाहिए। क्योंकि वे सीता, शंकुतला के उन बातों के उदाहरण देते हैं, जो उन्होंने अपने-अपने पतियों को कहे थे। वो ये बाते तब ही कह पाई क्योंकि वो शिक्षित थी उस समय भी शिक्षा दिया जाता था। स्त्रियों को बिच में कुछ लोगो ने विरोध किया कि स्त्रियों को शिक्षा नहीं देनी चाहिए। लेकिन फिर आने वाले वर्तमान में स्त्रियों को शिक्षा मिलने लगी। लेकिन फिर भी आज भी कुछ लोग ऐसे है जो प्राचिन काल की बातो को याद करके स्त्रीयों को शिक्षा नहीं देना चाहते है। लेकिन स्त्रियों के शिक्षा देना चाहिए उन्हे शिक्षा प्राप्त करने के प्रति प्रेरित करें ना कि शिक्षा न प्राप्त करने के भ्रम में।JAC board class 10 Hindi Stri shiksha ke virodhi
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