इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 हिंदी के पाठ बारह ‘शिक्षा में हेर – फेर’ (Siksha Me Her Pher class 9 Hindi) के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे। जिसके लेखक रविंद्रनाथ टैगोर है।
12. शिक्षा में हेर – फेर
लेखक- रविंद्रनाथ टैगोर
जन्म :- रविंद्रनाथ टैगोर का जन्म बंगाल के प्रसिद्ध टैगोर वंश 1861 ई.में कोलकाता में हुआ था।
पिता :- महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर थे। टैगोर परिवार अपनी समृद्धि कला, विद्या,संगीत,के लिए संपूर्ण बंगाल में प्रसिद्ध थे।
शिक्षा :- टैगोर को सर्वप्रथम ओरिएंटल सेमिनरी स्कूल में भर्ती किया गया। परंतु उनका मन वहा नहीं लगा। इस कारण उनको कुछ महीनों के बाद नॉर्मल स्कूल में दाखिल दिलाया गया। इस विद्यालय में लेखक को कटूता महसूस हुआ। जिसके कारण लेखक इसमें सुधार करने के लिए 1901 ई. में ‘शांति निकेतन’ की स्थापना की जो आज ‘विश्व भारती विश्वविद्यालय’ के नाम से प्रख्यात है।
1878 मे टैगोर अपने भाई के साथ उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैंड गए परंतु वहा अधिक दिनों तक नहीं रहे। 1880 ई. में वे स्वदेश लौटे 1881 ई. में पुनः इंग्लैंड गए। वे वहाँ कानून की शिक्षा प्राप्त करने के ध्याय से गए थे। परंतु विचार परिवर्तन के कारण पुनः वापस लौट आए।
विशेष :- 1919 ई. में जलियावाला बाग हत्याकांड के उपरांत औपनिवेशिक सत्ता से विक्षब्द होकर उन्होंने ‘नाइट हौंडा की अवधि लौटा दी।
पुरस्कार :- 1913 ई. में उन्हें ‘गीतांजलि’ पर नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
प्रमुख कृतिया :- काव्यसंग्रह – ‘मानसी ‘ ‘सोनारतारी’ ‘चित्रा’ ‘चैताली’ ‘कल्पना’ ‘क्षणिक’ ‘गीतांजलि’ आदि।
उपन्यास :- “गोरा “
काव्य नाटक :- ” चित्रगंधा “
कहानी संग्रह :- ” गल्प गुच्छ “
Siksha Me Her Pher class 9 Hindi
पाठ – 12
शिक्षा में हेर – फेर
प्रस्तुत पाठ शिक्षा में हेर-फेर एक शिक्षाशास्त्र है। जो एक महान लेखक रविंद्र नाथ टैगोर के द्वारा लिखा गया है। इस निबंध के माध्यम से लेखक शिक्षा के बारे में बताते हैं। शिक्षा में कैसे सुधार किया जा सकता है, इसके बारे में मैं भी व्याख्या करते हैं।
लेखक कहते हैं कि जीवन की आवश्यकता में बंद कर आ जाना मानव जीवन का धर्म नहीं है। मनुष्य कुछ हद तक आजाद भी है। शिक्षा के विषय में भी यही बात लागू होती है। बच्चों को आवश्यक शिक्षा के साथ स्वाधीनता के सीख भी मिलनी चाहिए। पढ़ाई के साथ-साथ मनोरंजन भी जरूरी है विदेशों में बच्चे जब अपने दाँतो से बड़े आनंद के साथ ईख चूसते हैं। तब हमारे देश में बच्चे विद्यालय के बेंच पर अपनी दो दुबली – पतली टांगों को हिलाते हुए मास्टर के बेंत हजम करते हैं।
शिक्षा व्यवस्था में बचपन से ही आनंद के लिए जगह होनी चाहिए। विद्या कंठस्य करने से छात्र का काम भले चल जाता है पर इससे उसका विकास नहीं होता है। आनंददायक तरीके से पढ़ते रहने से पठान शक्ति बढ़ती है। सहज स्वाभाविक नियम से ग्राम शक्ति, धारण शक्ति, और चिंता शक्ति भी सफल होती है। अंग्रेजी विदेश भाषा है जब शब्द विन्यास और पद विन्यास की दृष्टि से हमारी भाषा के साथ उसका कोई समानजस्य नहीं है। इसे धारणा उत्पन्न करके पढ़ना चाहिए। रूठ कर सीखना बिना चबाये अन्न निगलने की तरह है।
बचपन से ही भाषा शिक्षा के साथ भाव शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए। भाव के साथ पूरी जीवन – यात्रा नियमित रहने पर जीवन के यथार्थ में समानजस्य बनाता है। जीवन का बड़ा हिस्सा हम जिस शिक्षा को सीखने में व्यतीत करते हैं। उसका जीवन में कोई उपयोग ना हो तो बड़ी कठिनाई होगी। लोगों के मन में अपनी मातृभाषा के प्रति दृढ़ संबंध होना चाहिए तभी वह जीवन में सफल होंगे। Siksha Me Her Pher class 9 Hindi
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