इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 हिंदी के पाठ ग्यारह ‘समुद्र’ (Samudra class 9th hindi) के अर्थ को पढ़ेंगे। जिसके लेखक सितकांत महापात्र है।
समुद्र
पाठ –11
लेखक परिचय
लेखक- सितकांत महापात्र
जन्म :- 17 सितंबर 1937 ई. को उड़ीसा में हुआ।
शिक्षा :- 1957 ईस्वी में उत्कल विश्वविद्यालय से इन्होंने बी .ए . किया। एम. ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1959 ई. में राजनीती बिज्ञान विषय से किया।
काव्य प्रमुख :- “अस्टपढ़ी”, “समुन्द्र ” आदि।
अंग्रेजी में रचनाएँ :- द रुड़ंत टेम्पल एंड अदर पोयेम्स (1993)।
पुरस्कार :- इन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जिनमें “ज्ञानपीठ” पुरस्कार (1993) “सरला” पुरस्कार (1985) उड़ीसा साहित्य अकादमी पुरस्कार (1971) साहित्य अकादमी पुरस्कार (1984), सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1983), प्रमुख हैं।
समुद्र का कुछ भी नहीं होता ।
मानो अपनी अबूझ भाषा में
कहता रहता है
जो भी ले जाना हो ले जाओ
जितना चाहो ले जाओ
फिर भी रहेगी बची देने की अभिलाषा ।
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि “सीताकांत महापात्र” के द्वारा लिखित कविता ‘समुंद्र’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस कविता में कवि समुंद्र के चरित्र तथा मानव की उपभोक्तावादी प्रवृति पर प्रकाश डाले हैं।
इस पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहते हैं, कि समुद्र कितना बड़ा होता है। फिर भी वह अपनी विशालता पर घमंड नहीं करता। वह अपने आप को अबुझ समझता है। वह मानव को चिल्ला – चिल्ला कर कह रहा है, कि हे मानव तुमको जो चाहिए जितने चाहो यहाँ से ले जाओ यदि मेरे पास कुछ बचा भी नहीं है। तो मैं खुद भी कुछ देने की अभिलाषा रखता हुँ। लेकिन मानव इतना स्वार्थी हो गया है। कि कितना हूँ दे दो लेकिन उसका पेट कभी नहीं भरता है। वह कभी भी संतुष्ट नहीं होता है। उसे कुछ न कुछ घटी ही रहती है। Samudra class 9th hindi
क्या चाहते हो ले जाना, घोंघे ?
क्या बनाओगे ले जाकर ?
कमीज के बटन ?
नाड़ा काटने के औजार ?
टेबुल पर यादगार ?
किंतु मेरी रेत पर जिस तरह दिखते हैं
उस तरह कभी नहीं दिखेंगे ।
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि “सीताकांत महापात्र” के द्वारा लिखित कविता ‘समुंद्र’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस कविता में कवि समुंद्र के चरित्र तथा मानव की उपभोक्तावादी संस्कृति की तीखी आलोचना की है।
इस पंक्तियों के माध्यम से कवि यह प्रकट करना चाहते हैं कि आज मनुष्य प्राकृतिक प्रेम की अपेक्षा कर कृत्रिमता की ओर बढ़ता आ रहा है। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए किसी को भी नष्ट कर दे रहा है। प्रकृति का थोड़ा भी ख्याल उसके आत्मा में नहीं है। वह अपना मन चाहे किसी भी वस्तु का आवश्यकता से अधिक प्रयोग कर रहा है। वही समुंद्र को कहता है कि तुम जो मन सो कर लो प्रकृति के दिए हुए वस्तुओं का पर तुम प्रकृति के जैसा सुंदर वस्तुएं नहीं बना सकते हो।
या खेलकूद में मस्त केंकड़े ?
यदि धर भी लिया उन्हें
तो उनकी आवश्यकतानुसार
नन्हे नन्हे सहस्र गड्ढों के लिए
भला इतनी पृथ्वी पाओगे कहाँ ?
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि “सीताकांत महापात्र” के द्वारा लिखित कविता ‘समुंद्र’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस कविता में कवि समुंद्र के चरित्र तथा मानव की उपभोक्तावादी संस्कृति की और ध्यान प्रकट किये हई।
इस पंक्तियों के माध्यम से कवि यह प्रकट करना चाहते हैं, कि समाज समुंद्र के समान महान एवं अक्षय होता है। वह इतना उदार होता है,कि व्यक्ति उससे लाभ लेते – लेते थक जाता है।फिर भी वह अक्षय ही रहता है। लेकिन मनुष्य इतना लोभी तथा लालची होता है। कि वह कभी भी संतुष्ट ही नहीं होता है। मनुष्य इसी स्वभाव के कारण पूरे समाज के सामाजिक व्यवस्था खराब होते जा रही है।और मनुष्य स्वार्थ के कारण और अमानवीय होता जा रहा है।
या चाहते हो फोटो ?
वह तो चाहे जितना खींच लो
तुम्हारे टीवी के बगल में
सोता रहूँगा छोटे से फ्रेम में बँधा
गर्जन – तर्जन, मेरा नाच गीत, उद्वेलन
कुछ भी नहीं होगा ।
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि “सीताकांत महापात्र” के द्वारा लिखित कविता ‘समुंद्र’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस कविता में कवि समुंद्र के चरित्र तथा मानव की उपभोक्तावादी पर प्रकाश डाले हैं।
इस पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मैं अपना आंतरिक अभिलाषा प्रकट करते हुए कहता हूँ। कि मैं उन भटके हुए मानव को समाज से जुड़ने के लिए हमेशा प्रयत्न करता रहता हूँ। कवि किसी वर्ग या समुदाय विशेष के लिए नहीं होता वह समग्र समाज को आदर्श पथ पर अग्रसर होते देखना चाहता है। ताकि समाज में स्वत ताल मेंल कायम रहे। सामाजिक बुराइयाँ खत्म हो। तथा सभी लोग आपस में मिलजुल कर अपनी जिंदगी व्यतीत करें। Samudra class 9th hindi
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