इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 हिंदी के पाठ आठ ‘रेल यात्रा’ (Rail Yatra class 9 Hindi) के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे। जिसके लेखक शरद जोशी है।
9. रेल यात्रा
लेखक- शरद जोशी
जन्म :- मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में 21 मई 1931 ई. को हुआ।
निधन :- 1991 इ.।
जोशी की प्रमुख व्यंग्य कृतियां है। :- “परिक्रमा”, “किसी बहाने”, “जीप पर सवार इल्लियां”,” तिलस्म”, “रहा किनारे बैठा”, “दूसरी सातेह”,”प्रतिदिन” आदि।
दो व्यंग्य नाटक :- “अंधों का हाथी” और “एक था गधा”। एक उपन्यास है- मैं,मैं,केवल में,उर्फ कमलमुख बी.ए.है।
रेल यात्रा
प्रस्तुत पाठ “रेल यात्रा” एक व्यंग्य है। जो एक जाने-माने महान व्यंग्यकार “शरद जोशी” के द्वारा लिखा गया है। शरद जोशी के व्यंग्य तिल मिलाकर रख देने वाले होते हैं। इस रचना में उन्होंने भारतीय रेल की दुर्व्यवहार का वर्णन करने के साथ भारतीय समाज और व्यवस्था की पोल भी खोली है। सभी कभी ना कभी रेल यात्रा करते हैं। और इस दौरान होने वाली परेशानियों से परिचित भी है। पर लेखक ने इस रचना में उन परेशानियों का ऐसा चित्रण किया है कि वह हृदय में हल जाते हैं।
रेल मंत्री का मानना है कि भारतीय रेलों तेजी से प्रगति कर रही है। जबकि लेखक के अनुसार रेल की प्रगति यही है कि एक स्थान से लोगों को दूसरे स्थान तक पहुँचा देती है। लेकिन डब्बे में घुसते ही रेल की प्रगति की सच्चाई का पता चल जाता है। डब्बे में बैठने की बात तो दूर साँस लेने की जगह नहीं मिलती धक्का-मुक्की,मारपीट, जोर-जबर्दस्ती तथा नोक-झोंक भारतीय रेल यात्रा के प्रधान विशेषता है। सरकारी अव्यवस्था के कारण सीट उन्हें ही मिलती है। जिन्हे धन-बल हैं। कुछ बाहुबली भी सीट प्राप्त कर लेते हैं। Rail Yatra class 9 Hindi
लेखक का कहना है कि हमारे यहाँ कहा जाता है ‘ ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें ‘ ऐसा क्यों? इस संबंध में लेखक का तर्क है कि रेल यात्रा में भगवान की कृपा ही सर्वोपरि है। क्योंकि रेल कहाँ दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगी निर्दीस्त स्थान पर कब पहुँचेगी, तथा भीड़ में जगह मिलेगी या नहीं, सारी बातें ईश्वर की कृपा पर निर्भर करती है। भारतीय रेल कर्म पर विश्वास करती है। फल की चिंता नहीं करती इसका दायित्व मात्र निश्चित स्थान तक पहुँचा देना है। यात्री की जो भी दशा हो, वे जिंदा रहे या मुर्दा इसकी जिम्मेदारी भारतीय रेल को नहीं है। वह पूर्ण ईमानदारी से अपना काम करती है। उसे पता है कि जिसे जाना है वह तो ऊपर लेट कर,या पैर पसार कर,अथवा सामान लिए दरवाजा पर खड़े होकर जाएगा। क्योंकि उसे जाना है। इतना ही नहीं जिसमें मनोबल, आत्मबल,शारीरिक बल,तथा अन्य किस्म का बल है। उसे यात्रा करने से कोई रोक नहीं सकता। भारतीय रेल तो साफ कहती है ‘जिसमें दम उसके हम ‘।लेखक के कहने का तात्पर्य है कि भ्रष्टाचार के कारण जो शराफत और अनिर्णय के मारे होते हैं। वह क्यों में खड़े रहते हैं, वेटिंग लिस्ट में पड़े रहते हैं, उनकी दुर्दशा तब भी थी जब पैदल चलना पड़ता था। और आज भी है,क्योंकि उनकी बातों को सुनने वाला कोई नहीं है।
लेखक भारतीय रेलवे की व्यवस्था पर व्यंग्यात्मक लहजे में कहता है कि भारतीय रेलों ने एक बात सिद्ध कर दिया है कि बड़े आराम अथवा पीड़ा के सामने छोटे आराम पीड़ा का कोई महत्व नहीं होता,जैसे किसी घर में कोई मर जाता है,अथवा किसी की शादी तय हो जाती है,गाँव जाने के लिए फ़ौरन ट्रेन में चढ़ जाते हैं, भीड़, धक्का – मुक्की,गाली- गलौज, सब कुछ सहन करते खड़े रहते हैं, क्योंकि घर में आदमी मर गया है। अथवा शादी की बात तय हो गई है। भारतीय रेल हमें चिंतन सिखाती है, कि जीवन की अंतिम यात्रा अर्थात मृत्यु के समय मनुष्य खाली हाथ रहता है। उसी प्रकार मनुष्य रेल यात्रा के समय खाली रहना चाहिए, क्योंकि सामान लाने पर बैठने की समस्या हो जाती है, बैठने पर सामान रखने की समस्या खड़ी हो जाती है,यदि दोनों काम हो जाता है, तो दो प्रश्न उठता है कि दूसरा आदमी कहाँ बैठेगा, अथवा समान रखेगा तातपर्य हैं की रेलों में इतनी अधिक भीड़ रहती है। कि कहीं जाने के समय सोचना पड़ जाता है,क्योंकि भारतीय रेल हमे मृत्यु का दर्शन समझाती है। और अक्सर पटरी से उतर कर उसकी महत्ता का अनुभव करा देती है। रेल में चढ़ने के बाद यह कहना कठिन होता है। कि कहाँ उतरेगा अस्पताल में या शमशान में इसी कारण लोग रेलों की आलोचना करते हैं।
निष्कर्ष रूप में लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि सरकार की उदासीनता तथा रेलों की भ्रष्ट व्यवस्था के कारण रेल यात्रा करते हुए हम अक्सर विचारों में डूब जाते हैं। इसका मुख्य कारण रेल की अनियमितता है। यह कहीं भी खड़ी हो जाती है ऐसा देखकर कोई यात्री लेखक से पूछ बैठता है ” कहिए साहब आपका क्या ख्याल है, इस कंट्री का कोई फ्यूचर है या नहीं “, ‘ पता नहीं ‘ जवाब देते हैं ” अभी तो यह सोचिए कि इस ट्रेन का कोई फ्यूचर है या नहीं आत: इससे स्पष्ट होता है कि आज के विकसित परिवेश में भारतीय रेले एवं भारतीय अभी भी अविकसित है।लेखक व्यंग्यात्मक भाषा में कहता है। ‘अपने भारतीय मनुष्य को भारतीय रेल के पीछे भागते देखा होगा। उसे पायदान से लटके डिब्बे की छत पर बैठे, भारतीय रेलों के साथ प्रगति करते देखा होगा, लेखक का मानना है कि अगर इसी तरह रेल पीछे आती रही तो भारतीय मनुष्य के पास बढ़ते रहने के सिवाय कोई रास्ता नहीं रहेगा। रेल में सफर करते, दिन भर झगड़ते, रात भर जागते रेलनिशान सर्वभूतानां, चरितार्थ करते रहेंगे।
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