इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 हिंदी पद्य भाग के पाठ एक ‘रैदास के पद’ (Raidas Ke Pad class 9 Hindi) के अर्थ को पढ़ेंगे। जिसके लेखक रैदास है।
पाठ –13. पद
लेखक- रैदास
जन्म :- रैदास नाम से विख्यात संत कवि रविदास का जन्म बनारस में सन 1388 में हुआ था।
निधन :- सन 1518 में हुआ।
विशेष :- रैदास के ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था। मध्ययुगीन साधकों के में रैदास का विशिष्ट स्थान है।
रचनाएँ :- रैदास में सीधे-साधे पदों में अपनी रचनाएँ की है। ऐसी मान्यता है कि उनके चालीस पद सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ, गुरुग्रंथ साहिब में सम्मिलित है।
पाठ – 13
पद
श्लोक -1
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी ।
प्रभु जी, तुम धन बन हम मोरा , जैसे चितवत चकोरा।
प्रभु जी , तुम दीपक हम बाती , जाकी ज्योति बुरै दिन राती ।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहीं मिलत सुहागा।
प्रभु जी , तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै रैदास ।
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रैदास के द्वारा लिखित पद से लिया गया है। प्रथम पद में कभी अपने प्रभु के बारे में वर्णन करते हुए कहते हैं।
हे प्रभु जी तुम चंदन के समान शीतलता प्रदान करने वाले चंदन के सुगंध के समान हर जगह रहने वाले हो और मैं पानी हूं जिस प्रकार चंदन पानी के बिना अपने रूप में नहीं जाता उसी प्रकार मैं तुम्हें समाहित हूँ। तुम वन के घन हो और मैं वन का मोर हूँ। जैसे चकोर चंद्रमा को देखता रहा है उसी प्रकार मैं भी तुम्हें निहारता रहता हूँ। जिस प्रकार बाती के बिना दीपक का अस्तित्व नहीं होता उसी प्रकार मेरा अस्तित्व भी तुम्हारे होने के लेकर है। जिस प्रकार ज्योति सारी रात प्रकाशित होती रहती है उसी प्रकार मेरे अतंस्य को प्रकाशित कीजिए। तुम यदि मोती हो तो मैं धागा हूँ। जिस प्रकार सोने के शुद्ध करने के लिए सुहाग की जरूरत होती है,यदि वह मिल जाती है तो सोना शुद्ध हो जाता है उसी प्रकार मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ। जिससे मेरा शुद्धीकरण हो जाए तुम हमारे स्वामी हो और मैं तुम्हारा दास हूँ। Raidas Ke Pad class 9 Hindi
श्लोक –2
राम मैं पूजा कहाँ चढ़ाऊँ । फल अरु मूल अनूप न पाऊँ ।।
थनहर दूध जो बछरू जुठारी । पुहुप भँवर जल मीन बिगारी ॥
मलयागिरी बेधियो भुअंगा । विष अमृत दोऊ एकै संगा ॥
मन ही पूजा मन ही धूप । मन ही सेऊँ सहज संरूप ॥
पूजा अरचा जानूँ तेरी । कह रैदास कवन गति मेरी ॥
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ रैदास के द्वारा रचित ‘पद’ से लिया गया है। कवि इस पंक्तियों के माध्यम से ईश्वर की आराधना के बारे में बताते हुए कहते हैं कि सच्चे मन – तन से ईश्वर को पूजना चाहिए।
कवि की नजर में ईश्वर की अराधना में प्रयुक्त फूल- फल अनुपम नहीं लगते हैं। उसे झूठे और गंधले लगते हैं। इसलिए वह कहता है – राम मैं पूजा में क्या चढ़ाऊँगा। गाय के थान को उसका बछड़ा जूठा कर देती है। पुष्प को भौरा,जल को मछली, बिगाड़ देती है। अतः प्रभु मैं मन ही मन तुम्हारी पूजा-अर्चना करता हूँ। अब तुम्ही बताओ मेरी क्या गलती है।
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