इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 10 विज्ञान के पाठ परिवहन (Pariwahan class 10 science notes) के प्रत्येक टॉपिक के व्याख्या को पढ़ेंगे।
3. परिवहन
उपयोगी पदार्थों को शरीर के प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाना और अनुपयोगी पदार्थों को कोशिकाओं से निकालकार गंतव्य स्थान तक पहुँचाने की क्रिया को पदार्थों का परिवहन कहते हैं।
मानव शरीर में परिवहन मुख्य रूप से रक्त एवं लसिका के द्वारा होता है।
पौधों में पदार्थों का परिवहन
एककोशिकीय पौधों, जैसे क्लैमाइडोमोनास, यूग्लीना एवं सरल बहुकोशीकीय शैवालों में पदार्थों का परिवहन विसरण द्वारा होता है।
पौधों में परिवहन मुख्य रूप से जाइलम और फ्लोएम ऊतकों के द्वारा होता है।
जाइलम- यह जल-संवाहक ऊतक है। इसमें पाई जानेवाली वाहिकाएँ एवं वाहिनिकाएँ मुख्य रूप से जल एवं खनिज लवणों के स्थानांतरण में सहायक होती हैं।
फ्लोएम- यह संवहन बंडल का दूसरा जटिल ऊतक है तथा इसमें पाई जानेवाली चालनी नलिकाएँ का मुख्य कार्य पौधे के हरे भागों में निर्मित भोज्य पदार्थों को दूसरे भागों में वितरित करता है।
Pariwahan class 10 science notes
जाइलम एवं फ्लोएम में क्या अंतर है ?
जाइलम एवं फ्लोएम में मुख्य अंतर निम्नलिखित है-
1. जाइलम की कोशिकाएँ मृत होती है जबकि फ्लोएम की कोशिकाएँ जीवित होती है
2. जाइलम जल एवं घुलित खनिज का स्थानांतरण करता है जबकि फ्लोएम खाद्य पदार्थो का स्थानांतरण करता है
3. जाइलम में जल एवं घुलित खनिज लवणों का बहाव ऊपर की और होता है जबकि फ्लोएम में खाद्य पदार्थो का बहाव ऊपर एवं निचे दोनों तरफ परिवहन होता है।
वाष्पोत्सर्जन- पौधों के वायवीय भागों से जल का रंध्रों द्वारा वाष्प के रूप में निष्कासन की क्रिया वाष्पोत्सर्जन कहलाती है।
पौधों के पित्तयों में सुक्ष्म छिद्र पाई जाती है, जिसे रंध्र कहते हैं। रंध्रों के माध्यम से श्वसन तथा वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है।
परासरण विधि द्वारा पौधों में वाष्पोत्सर्जन होता है। वाष्पोत्सर्जन के कारण जल का संचलन जाइलम ऊतकों से रंध्रों के तक हमेशा होता रहता है।
पौधों की जड़ से चोटी तक जल का प्रवाह वाष्पोत्सर्जन के कारण होती है।
वाष्पोत्सर्जन के कारण पौधों का तापमान स्थिर रहता है।
पौधे के एक भाग से दूसरे भाग में खाद्य पदार्थो के जलीय घोल के आने जाने को खाद्य पदार्थो का स्थानांतरण कहा जाता है।
जंतुओं में परिवहन
उच्च श्रेणी के जंतुओं में ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, पोषक तत्वों, हार्मोन, उत्सर्जी पदार्थों आदि को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाने के लिए एक विशेष प्रकार का परिवहन तंत्र होता है।
रूधिर, हृदय और रक्त वाहिनियाँ परिसंचरण तंत्र या रक्त परिवहन तंत्र का निर्माण करते हैं। लसीका तंत्र भी परिवहन तंत्र का निर्माण करता है।
रक्त परिवहन तंत्र
रक्त लाल रंग का गाढ़ा क्षारीय तरल पदार्थ है, इसका pH मान 7.4 होता है। रक्त को तरल संयोजी उत्तक कहते है।
1. रक्त को तरल संयोजी ऊतक क्यों कहते हैं ?
उत्तर-रक्त अपने प्रवाह के दौरान सभी प्रकार के ऊतकों का संयोजन करता है, इसलिए रक्त को तरल संयोजी ऊतक कहते हैं।
रक्त की संरचना- रक्त के दो प्रमुख घटक होते है।
1. तरल भाग जो प्लाज्मा कहलाता है।
2. ठोस भाग जिसमे लाल रक्त कोशिकाएँ, श्वेत रक्त कोशिकाएँ तथा रक्त पट्टिकाणु होते हैं।
प्लाज्मा- यह हलके पिले रंग का चिपचिपा द्रव है जो आयतन के हिसाब से पुरे रक्त का करीब 55 प्रतिशत होता है, जिसमें करीब 90% जल, 7%प्रोटीन, 0.9% अकार्बनिक लवण, 0.18% ग्लुकोज, 0.5% वसा तथा शेष अन्य कार्बनिक पदार्थ होते है।
प्लाज्मा में फाइब्रिनोजिन, प्रोथ्रोंबिन तथा हिपैरिन प्रोटीन पाये जाते हैं, जो रक्त को थक्का बनाने में सहायक होते हैं।
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रक्त कोशिकाएँ- आयतन हिसाब से रक्त कोशिकाएँ कुल रक्त के करीब 45 प्रतिशत भाग है।
रक्त का रंग लाल क्यों ?
लाल रक्त कोशिकाओं में एक विशेष प्रकार का प्राटीन वर्णक हीमोग्लोबिन पाया जाता है। हीमोग्लोबिन के कारण ही रक्त का रंग लाल दिखता है।
लाल रक्त कोशिकाएँ- यह ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचाने का कार्य करता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड को फेफड़ों तक पहुँचाने का कार्य करता है। लाल रक्त कोशिका में न्यूक्लियस नहीं होता है।
लाल रक्त कोशिका का जीवनकाल 120 दिन होता है। इसमें हिमोग्लोबीन पाया जाता है, जिसके कारण इसका रंग लाल होता है। हिमोग्लोबीन में लोहा पाया जाता है।
श्वेत रक्त कोशिकाएँ- ये अनियमित आकार के न्यूक्लियस युक्त कोशिकाएँ हैं। इनमें हीमोग्लोबिन जैसे वर्णक नहीं होते हैं, जिसके कारण ये रंगहीन होती है। इनकी संख्या लाल रक्त कोशिकाओं की तुलना में बहुत कम होती है।
रक्त पट्टिकाणु- ये रक्त को थक्का बनाने में मदद करते हैं।
मनुष्य का हृदय- हृदय एक अत्यंत कोमल, मांसल रचना है, जो वक्षगुहा के मध्य में पसलियों के नीचे दोनों फेफड़ों पके बीच स्थित होता है। यह रक्त को पंप करने का कार्य करता है।
यह हृद्-पेशियों का बना होता है। यह पेरिटोनियम की एक दोहरी झिल्ली के अंदर बंद रहता है, जिसे पेरीकार्डियम कहते हैं।
मनुष्य तथा मैमेलिया वर्ग के सभी जंतुओं के हृदय में चार वेश्म होते हैं जो दायाँ और बायाँ अलिंद तथा दायाँ और बायाँ निलय कहलाते हैं।
मछली के हृदय में तीन वेश्म होते हैं। उभयचर जैसे मेढ़क, सरीसृप जैसे साँप, छिपकली के हृदय तीन वेश्म के होते हैं।
हृदय की धड़कन का तालबद्ध संकुंचन एक विशेष प्रकार के तंत्रिका ऊतक के द्वारा होता है जिसे S-A नोड या पेसमेकर कहते हैं। यह बहुत ही मंद विद्युत धारा उत्पन्न करता है।
रक्त वाहिनियाँ
रक्त के परिसंचरण के लिए शरीर में तनी प्रकार की रक्त वाहिनियाँ होती है जो धमनियाँ, रक्त केशिकाएँ तथा शिराएँ कहलाती है।
धमनी और शिरा में अंतर-
धमनी |
शिरा |
1. धमनी में शुद्ध रक्त या ऑक्सीजनित रक्त का प्रवाह हृदय से शरीर के विभिन्न विभिन्न अंगों में होता है। | 1. शिरा में अशुद्ध रक्त या विऑक्सीजनित रक्त का प्रवाह शरीर के विभिन्न विभिन्न अंगों से हृदय की ओर होता है।
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2. धमनी की दिवारें मोटी, लचीली औ कपाटहीन होती है। | 2. शिरा की दिवारें पतली और कपाटयुक्त होती है।
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3. यह शरीर में अधिक गहराई में पाया जाता है। इसमें रक्त का दाब और चाल दोनों अधिक होता है। | 3. यह शरीर में कम गहराई में पाया जाता है। इसमें रक्त का दाब और चाल दोनों कम होता है। |
4. सिर्फ फुफ्फुस धमनी में अशुद्ध रक्त का प्रवाह होता है, जो अशुद्ध रक्त को हृदय से फेफड़ा में ले जाने का कार्य करता है। | 4. सिर्फ फुफ्फुस शिरा में शुद्ध रक्त का प्रवाह होता है, जो शुद्ध रक्त को फेफड़ा से हृदय की ओर ले जाने का कार्य करता है। |
धमनी- ये शुद्ध या ऑक्सीजन जनित रक्त को शरीर के विभिन्न हिस्सों में ले जाती है। इसकी दिवारें मोटी, लचीली तथा कपाटहीन होती है।
केशिकाएँ- ये बहुत ही महीन रक्त नलिकाएँ होती हैं। इसकी दीवार जल, पचे हुए भोज्य पदार्थ एवं उत्सर्जी पदार्थ, ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के लिए पारगम्य होती है।
धमनी विभिन्न केशिकाएँ में बँट जाती है। विभिन्न केशिकाएँ मिलकर शिरिकाएँ बनाती हैं और विभिन्न शिरिकाएँ आपस में जुड़कर शिरा बनाती है।
शिराएँ- यह अशुद्ध या ऑक्सीजन रहित रक्त को विभिन्न अंगों से हृदय की ओर ले जाती है। शिराओं में हृदय की खुलनेवाले कपाट लगे होते हैं जो रक्त को केवल हृदय की ओर जाने देते हैं।
लसिका- लसिका हल्के पीले रंग का तरल होता है। इसमें श्वेत रक्त कोशिकाएँ पाई जाती है, लेकिन लाल रक्त कोशिकाएँ और प्लेटलेट्स नहीं पाए जाते हैं।
शरीर में बहुत सारी लसिका ग्रंथि पाई जाती है। यह शरीर को संक्रमण से बचाती है।
रक्तचाप- महाधमनी एवं उनकी मुख्य शाखाओं में रक्त का दबाव रक्तचाप कहलाता है।
एक स्वस्थ व्यक्ति का सामान्य स्थिति में सिस्टोलिक प्रेशर/डायस्टोलिक प्रेशरत्र 120/80 होता है। यही रक्तचाप कहलाता है।
रक्तचाप की माप एक विशेष उपकरण द्वारा की जाती है। यह उपकरण स्फिगमोमैनोमीटर कहलाता है।
सामान्य से अधिक उच्च रक्तचाप हाइपरटेंशन कहलाता है।
हाइपरटेंशन किसी रोग, मानसिक चिंता, उत्सुकता आदि से सम्बंधित हो सकता है। इसके कारण कभी-कभी हृद्याघात भी हो जाता है।
सामान्य से नीचे निम्न रक्तचाप हाइपोटेंशन कहलाता है।
हृदय की धड़कनों को मापने के लिए स्टेथोस्कोप का प्रयोग किया जाता है।
- एक मिनट में हृदय 72 बार धड़कता है।
- खुला परिसंचरण तंत्र तिलचट्टा में पाया जाता है।
- मानव हृदय में कोष्ठों की संख्या 4 होती है।
- मानव हृदय का औसत प्रकुंचन दाब लगभग 120 उउ भ्ह होता है।
- हृदय से रक्त को सम्पूर्ण शरीर में निलय द्वारा पंप किया जाता है।
- हीमोग्लोबीन की कमी से एनीमीया नामक रोग होता है।
- सामान्य अनुशिथिलन रक्त दाब 80 उउ होता है। निलयों के शिथिलन या प्रसारण से रक्त पर उत्पन्न दाब अनुशिथिलन दाब कहते हैं।
- मनुष्य में श्वेत रक्त कोशिकाओं की जीवन अवधि 12 से 20 दिन होती है। लाल रक्त कोशिकाओं की जीवन अवधि 120 दिन और प्लेट्लेट्स की जीवन अवधि 3 से 5 दिन होती है।
- मक्खी में हीमोग्लोबीन नहीं होता है।
- रुधिर तरल संयोजी ऊतक है।
- प्लेटलेट्स रक्तस्त्राव को रोकने में मदद करता है।
- पादप में जाइलम जल के वहन के लिए उत्तरदायी है।
- सबसे तेज हृदय धड़कन चूहा का होता है।
- फ्लोएम ऊतकों द्वारा कार्बोहाइड्रेट का परिवहन फ्रकटोज के रूप में होता है।
- रक्त तरल संयोजी ऊतक है।
- चालनी नलिकाएँ फ्लोएम में पायी जाती है।
- मानव हृदय पेरिकार्डियम नामक झिल्ली से घिरा होता है।
- ऑक्सीजन का वाहक त्ठब् होता है।
- पौधों में वाष्पोत्सर्जन पित्तयों के माध्यम से होता है।
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