इस पोस्ट में हमलोग झारखण्ड बोर्ड के हिन्दी के गद्य भाग के पाठ दस ‘नेताजी का चश्मा पाठ का व्याख्या कक्षा 10 हिंदी’ (JAC board class 10 Hindi Neta ji ka chashma class 10 summary) के व्याख्या को पढ़ेंगे।
10. नेताजी का चश्मा
प्रस्तुत पाठ हिन्दी के प्रसिद्ध कहानीकार ‘स्वयं प्रकाश‘ के द्वारा लिखा गया है।इनका जन्म इन्दौर (मध्य प्रदेश) में 1947 में हुआ था। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करके यह नौकरी के लिए राजस्थान आ गए। भोपाल के बहुत सारे पत्रिका के संपादन से जुड़े थे।
उनकी प्रमुख कहानी संग्रह ‘सुरज कब निकलेगा‘, ‘आएँगे अच्छे दिन भी‘, ‘आदमी जात का आदमी‘, ‘संधान‘ है।
बीच में विनय और ईंधन प्रमुख उपन्यास है।
पाठ का थीम प्रस्तुत पाठ देशभक्ति का संदेश देता है। इस पाठ के अनुसार देशभक्ति केवल किसी भू भाग से प्रेम करना नहीं, बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक, प्रकृति, जीव जन्तु, पशु पक्षी, पर्वत, पहाड़, झरने आदि सभी से प्रेम करना एवं उनकी रक्षा करना है। लेखक ने एक चश्मे बेचने वाले कैप्टन के माध्यम से एक ऐसे साधारण व्यक्ति के कार्य का वर्णन किया है, जो अभावग्रस्त जिंदगी बिताते हुए भी देशभक्ति की भावना रखता है, परन्तु हमारा समाज ऐसे व्यक्तियों को सम्मान देने के बजाय उस पर हँसता है।
पाठ का सारांश
हलदार साहब हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम से उस कस्बे से होकर गुजरते थे। कस्बे में कुछ पक्के मकान, एक छोटा सा बाजार, बालक बालिकाओं का दो विद्यालय, एक सीमेंट का कारखाना, दो खुली छतवाले सीनेमाघर तथा एक नगरपालिका थी। इस कस्बे के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुबाषचन्द्र बोस की मूर्ति लगी हुई, जिसे वह गुजरते हुए हमेशा देखा करते थे।
हालदार साहब ने जब पहली बार मूर्ति देखा, तो लगा कि इसे नगरपालिका के किसी उत्साही अधिकारी ने बनवाया होगा। मूर्ति को बनवाने में काफी समय पत्र व्यवहार में लग गया है। इस मूर्ति को जल्दीजल्दी में बनवाया होगा। लेखक कहते हैं कि इस मूर्ति की यह विशेषता थी कि उसका चश्मा सचमुच का था।
हालदार साहब जब अगली बार उस चौराहे से गुजरे तो उन्हें देखकर आश्चर्य हुआ कि इस बार मूर्ति का दूसरा चश्मा लगा हुआ था। हालदार साहब ने पान वाले से पूछा। पान वाले ने बताया कि कैप्टन इस चश्मे को बदलता रहता है। हालदार साहब ने सोचा कि कैप्टन कोई भूतपूर्व सैनिक होगा या आजाद हिंद फौज का सिपाही होगा।
जब हालदार साहब ने कैप्टन के बारे में पूछा तो पान वाले ने कैप्टन का मजाक उड़ाते हुए कहा कि वह लँगड़ा क्या जाएगा फौज में। उसी वक्त हालदार साहब ने देखा कि कैप्टन एक बेहद बुढ़ा मरियल सा लँगड़ा आदमी है, जो सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगा रखा है। वह घूमघूम कर चश्मा बेचता है।
अगर कोई ग्राहक मूर्ति के फ्रेम जैसा चश्मा माँगता, तो कैप्टन मूर्ति के चश्मे का फ्रेम उतारकर उसे दे देता और मूर्ति पर दूसरा फ्रेम लगा देता था।
पान वाले से हालदार साहब को यह जानकारी मिली कि मूर्तिकार समय कम होने के कारण मूर्ति पर चश्मा बनाना भूल गया था। जिसके कारण मूर्ति को बिना चश्मे के ही लगा दिया गया। कैप्टन को बिना चश्मे के मूर्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए वह मूर्ति पर चश्मा लगा दिया करता था। हालदार साहब लगभग दो साल तक मूर्ति पर लगे चश्मे को बदलते देखते रहे।
एक दिन जब हलदार साहब उसी कस्बे से होकर गुजरे, तो उन्होंने देखा कि मूर्ति पर चश्मे नहीं थी। अगली बार भी उसी रास्ते से गुजरे तो देखे कि मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं था। इस बारे में पान वाले से पूछने पर पान वाल ने बताया कि कैप्टन मर गया। हालदार साहब का यह सोचकर बहुत दुःख हुआ कि अब नेता जी की मूर्ति बिना चश्मे के ही रहेगी
अगली बार हालदार साहब ने सोचा कि इस बार मूर्ति की तरफ नहीं देखेंगे। लेकिन उनकी नजर मूर्ति की तरफ पड़ ही गया। क्योंकि वह आदत से मजबूर थे। जब उन्होंने चौराहे पर लगी हुई नेताजी की मूर्ति को देखा तो उनकी आँखें भर आई। मूर्ति पर किसी बच्चे ने सरकंडे का बना हुआ चश्मा लगा दिया था। हालदार साहब भावुक हो गए कि बड़ों के साथ बच्चों में भी देशभक्ति भरा हुआ है। Neta ji ka chashma class 10
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