इस पोस्ट में झारखण्ड बोर्ड कक्षा 10 के सामाजिक विज्ञान राजनिजीक शास्त्र के पाठ एक ‘लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी (Loktantra me satta ki sajhedari)’ नोट्स और Book Solutions पढ़ेंगे।
भाग- 2
1. लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी
प्रश्न 1. हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती। कैसे ?
उत्तर- कोई आवश्यक नहीं कि सभी सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का आधार होता है विभिन्न समुदायों के विचार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं किंतु उनका ही समान होगा। उदाहरणार्थमुंबई में मराठीयो के हिंसा का शिकार व्यक्तियों की जातियां भिन्न थी धर्म भिन्न होंगे लिंग भिन्न हो सकता है किंतु उनका क्षेत्र एक ही था वह सभी एक ही क्षेत्र के उत्तर भारतीय थे। उनका हित सामान था और वे सभी अपने व्यवसाय और पेशा में संलग्न थे। इस कारण सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं ले पाता
प्रश्न 2. सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजन ओं का रूप ले लेते हैं।
उत्तर- जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरो से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वह दूसरे समुदाय के हैं तो इससे सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है। इसलिए सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजनो का रूप ले लेते हैं
प्रश्न 3 सामाजिक विभाजनो की राजनीति के परिणामस्वरूप ही लोकतंत्र के व्यवहार में परिवर्तन होता हैा भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में इसे स्पष्ट करें
उत्तर-सामाजिक विभाजन की राजनीति का परिणाम सरकार के रूप पर निर्भर करता है अगर भारत में पिछड़ों एवं दलितों के न्याय की मांग को सरकार शुरू से ही खारिज करती रहती तो आज भारत बिखराव के कगार पर होता लेकिन सरकार उनके सामाजिक न्याय को उचित मानते हुए सत्ता में साझेदारी बनाया और उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने का ईमानदारी से प्रयास किया लोग शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से अपनी मांग को उठाते हैं और चुनावो के माध्यम से उनके लिए दबाव बनाते है और उनका समाधान पाने का प्रयास करते हैं
प्रश्न 4. 70 के दशक से आधुनिक दशक के बीच भारतीय लोकतंत्र का सफर सामाजिक न्याय के संदर्भ में का संक्षिप्त वर्णन करें
उत्तर- 70 के दशक से पूर्व भारत की राजनीति अवचेतना सुविधापस्ट हित समूह के बीच झूलती रही। दूसरे शब्दों में कहें तो 1967 तक राजनीति में सवर्ण जातियो का बचस्व रहा। 70 से 90 के दशक के बीच सवर्ण और मध्यम पिछड़ी जातियों में सत्ता कब्जा के लिए संघर्ष चलता रहा भारतीय राजनीति में महामंथन में पिछड़े और दलितों का संघर्ष प्रभावी रहा। आधुनिक दशक के वर्षों में राजनीति का पलड़ा दलितों और महादलितो के पक्ष में झुकता दिखाई पड़ रहा है। सरकार की नीतियों के सभी परिदृश्यों में दलित न्याय की पहचान सबके लिए केंद्र बिंदु का विषय बन गया है।
Loktantra me satta ki sajhedari
प्रश्न 5. सामाजिक विभाजनो की राजनीति का परिणाम किन- किन चीजों पर निर्भर करता है?
उत्तर- सामाजिक विभाजन की राजनीति का परिणाम निम्नलिखित चीजों पर निर्भर करता है।
पॉइंट 1 लोग अपनी पहचान स्व-अस्तित्व तक ही सीमित रखना चाहते हैं क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में राष्ट्रीय चेतना के अलावा स्थानीय चेतना भी होते हैं कोई एक चेतना बाकी चेतनाओं की कीमत पर उग्र होने लगती है तो समाज में असंतुलन पैदा हो जाता है।
पॉइंट 2 दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है कि किसी समुदाय या क्षेत्र विशेष की मांगों को राजनीतिक दल कैसे उठाते हैं। संविधान के दायरे में आनेवाली और दूसरे समुदाय को नुकसान न पहुंचाने वाली मांगों को मान लेना आसान है।
पॉइंट 3 सामाजिक विभाजन की राजनीति का परिणाम सरकार के रूप पर भी निर्भर करता है या भी महत्वपूर्ण है कि सरकार इन मांगों पर क्यों प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। अगर भारत सरकार सामाजिक न्याय को उचित नहीं मानती तो आज भारत का विखंडन हो गया होता।
प्रश्न 6. भावी समाज में लोकतंत्र का जिम्मेवार और उदेश्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-लोकतंत्र ऐसी शासन व्यवस्था है जिससे लोगों के लिए एवं लोगों के द्वारा ही शासन चलाया जाता है। शासन में लोकप्रतिनिधी लोगों के हित तथा उनकी इच्छा हुई सर्वोपरि महत्व देना चाहते हैं। लोकतंत्र सारी सामाजिक विभिन्नताओ अंतरों और असमानताओं के बीच बैठाकर उनका सर्वमान्य समाधान देने की कोशिश करता है।
प्रश्न 11. भारत में किस तरह जातिगत और समानताएं जारी है स्पष्ट करें।
उत्तर- भारत में सामाजिक असमानता और श्रम विभाजन पर आधारित समुदाय विद्यमान है। भारत इससे अछूता नहीं है भारत की तरह दूसरे देशों में भी पेशा का आधार वंशानुगत है पेशा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्वामी चला आता है पेशा पर आधारित सामुदायिक व्यवस्था ही जाति कालाता है। श्रम विभाजन का अतिवादी रूप कालाता है या एक खास अर्थ में समाज में दूसरे समुदाय से भिन्न हो जाता है इस प्रकार के वंशानुगत पेशा पर आधारित समुदाय जिसे हम जाति कहते हैं कि स्वीकृति रीति रिवाज से भी हो जाती है। इनकी बेटे बेटियों की शादी आपस के समुदाय ही होता है तथा खान-पान भी समान समुदाय में ही होता है
Loktantra me satta ki sajhedari
प्रश्न 12. क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे नहीं हो सकते ? इसके दो कारण बताएं ।
उत्तर- सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजों के दो कारण निम्नलिखित है।
(1) किसी भी निर्वाचन क्षेत्र का गठन इस प्रकार नहीं किया जाता है कि उसमें मात्र एक जाति के मतदान रहेा ऐसा हो सकता है कि एक जाति के मतदान की संख्या अधिक हो सकती है। दूसरे जाति के मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। हर पार्टी एक या एक से अधिक जाति के लोगों का भरोसा हासिल करना चाहता है
(2) यह भी कहना ठीक नहीं होगा कि कोई पार्टी विशेष केवल एक ही जाति का वोट हासिल कर सता में आता है जब लोग किसी जाति विशेष को किसी एक पार्टी का वोट बैंक कहते हैं। तो इसका मतलब यह होता है कि उस पार्टी के ज्यादातर लोग उसी पार्टी को वोट देते हैं
प्रश्न 13.विभिन्न तरह के सांप्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और सब के साथ एक-एक उदाहरण दें।
उत्तर- जब हम यह कहना शुरू करते हैं कि धर्म ही समुदाय का निर्माण करती है तो सांप्रदायिक राजनीति जन्म लेने लगती है और इस अवधारणा पर आधारित सोच ही सांप्रदायिकता है।
(1) सांप्रदायिकता की सोच पर आया: अपने धार्मिक समुदाय का प्रमुख राजनीति में बरकरार रखना चाहता है जो लोग बहुसंख्यक समुदाय के होते हैं उनकी यह कोशिश बहुसंख्यक बाद का रूप ले लेती है उदाहरण के लिए श्रीलंका में सिंहलियों का बहुसंख्यकवाद यहां लोकतांत्रिक रूप से सरकार ने भी सिंहली समुदाय की प्रभुता कायम करने के लिए अपने बहुसंख्यक परस्ती के तहत कई कदम उठाए।यथा 1956 में सिंहली को एकमात्र राजभाषा के रूप में घोषित करना विश्वविद्यालय और सरकारी नौकरियों में सिंहलियो को प्राथमिकता देना बौद्ध धर्म के संरक्षण के लिए कोई कदम उठाना आदि।
(2) सांप्रदायिक के आधार पर राजनीति के गोलबंदी सांप्रदायिकता का दूसरा रूप है। इस हेतु पवित्र पतिको धर्मगुरुओऔर भावनात्मक अपील आदि का सहारा लिया जाता है निर्वाचन के वक्त हम अक्सर ऐसा देखते हैं। किसी खास धर्म के अनुयायियों से किसी पार्टी विशेष के पक्ष में मतदान करने की अपील कराई जाती है
और अंत में सांप्रदायिकता का भयावह रूप कब हम देखते हैं जब संप्रदाय के आधार पर हिंसा दंगा और नरसंहार होता है। विभाजन के समय हमने इस त्रासदी को झेला है। आजादी के बाद भी कई जगहों पर बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई है।
Loktantra me satta ki sajhedari
प्रश्न 14. जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र करें जिसने भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव है या वे कमजोर स्थिति में हैं।
उत्तर- लड़के और लड़कियों के पालन पोषण के क्रम में ही परिवार में या भावना घर कर जाती है कि भविष्य में लड़कियों के मुख्य जिम्मेवारी गृहस्थी चलाने और बच्चों का पालन पोषण तक ही सीमित होती है। उनका काम खाना बनाना कपड़ा साफ करना सिलाई फढ़ाई करना और बच्चे का पालन पोषण आदि आधुनिक दौर में महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। भारत कृषि प्रधान देश है और यहां के लोगों के आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि है 1991 और 2001 जनगणना के बीते दशक में कृषि क्षेत्र में महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है धीरे-धीरे राजनीति में मुद्दे उठे और महिलाओं को भी सार्वजनिक जीवन में अवसर प्राप्त होने लगा सर्वप्रथम इंग्लैंड में सन 1918 में महिलाओं को वोट का अधिकार मिला।
भारत में तस्वीर अभी भी उतना संतोषजनक नहीं है हमारा समाज अभी भी पितृ प्रधान है औरतों के साथ भी कई तरह के भेदभाव होते हैं इस बात का संकेत निम्न तथ्यों से मिलता है
(1) महिलाओं में साक्षरता की दर अभी मात्र 54% है जबकि पुरुषों में 76% यद्यपि स्कूली शिक्षा में कई जगह लड़कियां अव्वल रही है फिर भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियों का प्रतिशत बहुत ही कम है।
(2) शिक्षा में लड़कियों के इसी पिछड़ेपन के कारण अभी ऊंचे तनख्वाह वाले और ऊंचे पदों पर पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है।
(3) यद्यपि एक सर्वेक्षण के अनुसार एक औरत औसत रोजाना साढे सात घंटे से ज्यादा काम करती है जबकि एक मर्द स्थान रोज छ: घंटा ही काम करता है। फिर भी पुरुषों द्वारा किया गया काम ही ज्यादा दिखाई पड़ता है क्योंकि उसे आमदनी होती है।
(4) लैंगिक पूर्वाग्रह का कला पक्ष बड़ा दुखदाई है जब भारत के अनेक हिस्से में मां बाप को सिर्फ लड़के की चाह होती है। लड़की को जन्म देने से पहले हत्या कर देने की प्रवृत्ति इसी मानसिकता का परिणाम है।
प्रश्न 15. भारत की विधायिकाओ में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है ?
उत्तर- औरतों के प्रति समाज इस घटिया नजरिया के कारण ही आंदोलन की शुरुआत होने लगी। महिला आंदोलन की मुख्य मांगों में सत्ता में भागीदारी की मांग सर्वोपरि रही। औरतों ने सोचना शुरू कर दिया कि जब तक औरतों का सत्ता पर नियंत्रण नहीं होगा तब तक इस समस्या का निपटारा नहीं होगा। भारत के लोकसभा में महिला प्रतिनिधियों की संख्या 59 हो गई है। इसका प्रतिशत 11% के नीचे ही है ग्रेट ब्रिटेन में 19.3% महिला प्रतिनिधि है तो संयुक्त राज्य अमेरिका इनका 16.3% है। महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ना लोकतंत्र के लिए शुभ है।
प्रश्न 16. किन्ही दो प्रावधानों का जिक्र करे जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाता है।
उत्तर- हमारे संविधान में धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना हेतु निम्न प्रावधान किए गए हैं।
(1) भारत में किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। श्रीलंका में बौद्ध धर्म पाकिस्तान में इस्लाम और ब्रिटेन में ईसाई धर्म को दर्जा दिया गया है। किंतु भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता है।
(2) संविधान में हर नागरिक को यह स्वतंत्रता दी गई है कि अपने विश्वास से वह किसी भी धर्म को अंगीकार कर सकता है इस आधार पर उसे किसी अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता है।
Loktantra me satta ki sajhedari
Read class 10th Social science – Click here
Watch video – Click here
Leave a Reply