इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 हिंदी के पाठ चार ‘लाल पान की बेगम’ Lal Pan Ki Begum class 9 Hindi) के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे।
पाठ-4
लाल पान की बेगम
लेखक परिचय
फणीश्वरनाथ रेणु
जन्म :- 4 मार्च 1921 इ. को औराही हिंगना नामक गाँव, जिला अररिया ( बिहार ) में हुआ था
शिक्षा :- इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गढ़बनैली सीमरबनी अररिया और फारबिसगंज में तथा माध्यमिक शिक्षा विराटनगर (नेपाल ) के विराटनगर आदर्श उच्च विद्यालय में हुई।
निधन :- 11 अप्रैल 1977 इ. में हुआ था
प्रमुख कृतिया :- ‘मैला आँचल’ ‘परती परिकथा ‘ ‘दीर्घतपा’ ‘ कलंक मुक्ति’ ‘ जुलुश ‘ ‘ पल्टू बाबू रोड ‘, (उपन्यास ) आदि है।
कहानी संग्रह :- ‘ठुमरी’ ‘अग्निखोर’ ‘आदिम रात्रि के महके’ ‘एक श्रावनी दोपहली की धुप’ ‘अच्छे आदमी’ आदि।
संस्मरण :- ‘ऋणजल – धनज़ल ‘ ‘तुलसी सिगंध ‘ ‘ ऋतू अश्रुत पूर्ब ‘ आदि।
रिपोर्टर्ज :- ‘ नेपाली क्रान्तिकथा ‘ आदि।
पाठ – 4
लाल पान की बेगम
प्रस्तुत पाठ ‘ लाल पान की बेगम ‘ एक आंचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा लिखित ग्रामीण परिवेश की कहानी है। इसमें कहानीकार ने नाच देखने और दिखाने के बहाने ग्रामीण जीवन के अनेक रंग – रेशों को गहरी संवेदना के साथ प्रकट किया है। इस कहानी की नायिका बिरजू की मां।
इस कहानी के आरंभ में एक झगड़ालू तथा क्रोधित मन स्थित वाली महिला के रूप में दिखाया गया है।उसके पति ने उसे पहले ही कहा था कि आज शाम को उसे परिवार के साथ बैलगाड़ी पर बैठाकर बलरामपुर का नाच दिखाने ले जाएंगे। उस दिन मीठी रोटी बनेगी। परिवार के सभी लोग बढ़िया – बढ़िया कपड़ा पहनकर नाच देखने चलेंगे। भोली – भाली बिरजू की मां का उल्लासित स्थित मन: स्थित में आज के दिन नाच देखने की तिथि और समय की प्रतीक्षा में थी। अब वही दिन और समय आ गया है। सरल हिर्दय बिरजू की मां शकरकंद उबालकर मीठी रोटी बनाने की तैयारी कर रही है समय निकलता जा रहा है। बिरजू के पिता के पास बैल तो है पर गाड़ी नहीं है। वह गाड़ी मांगने के लिए पास के गांव में गया है।उसके लौटने में अनावश्यक विलंब हो रहा है वीरजु की मां अब सब्र खो रही है। उसकी प्रतीक्षा की मन स्थिति अब क्रोध और खिस में बदल रही है।
वह साहूआईं के यहां से गुण लेने गई और वहां से लौटी अपनी बेटी पर यूँ ही बिगड़ने लगती है। मखनी फुआ की पुकार भरी आवाज पर क्रोधित होकर उसे भला-बुरा कह बैठती है। इस गुस्से की मन स्थिति में वह बेटे बिरजू और वही बंधी अपने बांगड़ को भला-बुरा कह देती है। बिरजू की माँ बहुत ज्यादा क्रोधित है। वह गुस्से की उस मन स्थिति में अपने दोनों बच्चों को डांट फटकार कर भूखे सोने की क्रोध भरी आज्ञा देती है।वह अपने पति को भी कोसने लगती है। उसका भाग ही खराब हैं जो इस गोबर गणेश घर-वाला उसे मिला, उसे कौन सा सुख- मौज दिया है उसके भाई ने। कोल्हू के बैल की तरह खाटकर सारी उम्र बिता दी। जिसके यहां कभी एक पैसे की जलेबी भी ला कर दी है। उसे रह रह कर अपने ऊपर भी गुस्सा आता है। “वह भी काम नहीं उसके जीभ में आग लगे ”।
कुछ ही देर में बिरजू के पिता बैलगाड़ी लेकर आता है। बच्चे अपनी माँ के साथ तो प्रतीक्षा में थे ही बिरजू के पिता अपनी पत्नी से इस विलंब का कारण बताता है और उसे नाच देखने चलने के लिए मना लेता है। बिरजू की माँ सरल हृदय की महिला थी उसका क्रोध तुरंत शांत हो जाता है। बिरजू का पिता उसके उस रूप को देखते रह जाता है। मानो लाल पान की बेगम हो। चलने के क्रम में बिरजू की माँ गांव के कुछ महिलाएँ को अपने साथ नाच देखने के लिए बैल गाड़ी पर बैठा ले जाती है।उसके मन में किसी प्रकार का किसी के लिए कोई क्रोध या जलन नहीं रहा जाता है। उसके मन में कोई लालसा अब नहीं रहा जाता है। Lal Pan Ki Begum class 9 Hindi
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