इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 हिंदी के पाठ तीन ‘कर्मवीर’ (Karmveer class 8th Hindi) के अर्थ को पढ़ेंगे। जिसके लेखक अयोध्यासिंह उपध्याय ‘हरिऔध’ है।
3. कर्मवीर
प्रस्तुत कविता ‘कर्मवीर‘ के रचनाकार एक महान कवि अयोध्यासिंह उपध्याय के ’हरिऔध‘ जी है। कवि इस कविता में कर्म की विशेषता के बारे में बताते हैं। वह कहते हैं कि मानव अपने कर्म के बल पर किसी भी चिज को पा सकता है।
देखकर बाधा विविध बहु विध्न घबराते नहीं ।
रह भरोसे भाग के दु:ख भोग पछताते नहीं ।।
काम कितना ही कठिन हो किंतु उकताते नहीं ।
भिड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं ।
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले ।
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले-फूले।
प्रस्तुत पंक्ति कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ’हरिऔध‘ के द्वारा लिखित कविता कर्मवीर से ली गई है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह बताते हैं कि जो मनुष्य कर्मवीर होते हैं । वह खुद पर भरोसा रखते हैं । तथा उनके मार्ग में कितना भी समस्याएँ क्यों न हो वह डट कर समना करते हैं। वह अपने ऊपर आय दुःख को समना करते है। वह भाग्य भरोसा सोच कर नहीं स्वीकार करते हैं।
आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही
मानते जी की हैं, सुनते हैं सदा सबकी कही
जो मदद करते हैं अपनी इस जगट में आप ही
भूलकर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।
प्रस्तुत पंक्ति कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ के द्वारा लिखित कविता ’कर्मवीर से ली गई है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि कर्मवीर मानव जिस कार्य को कहते हैं कि हम आज करेंगे तो वह उस कार्य को उसी दिन करते हैं । वे कल के भरोसे उसे नहीं छोड़ते हैं । वे सभी कि बातो को सुनते हैं । पर जो उनकी आत्मा ठीक कहती है उसी को मानते हैं । कर्मवीर मनुष्य किसी की मदद की राह नहीं देखते वे खुद ही अपना मदद कर लिया करते हैं। वे भुलकर भी किसी कार्य को करने के लिए दूसरे पर निर्भर नहीं रहते हैं । वे सब कार्य अपने मेहनत के बल पर कर लेते हैं । Karmveer class 8th Hindi
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नही ।
काम करने की जगह बाते बनाते हैं नहीं ।
आज-कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं ।
यत्न करने में कभी जो जी चुराते हैं नहीं ।
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके किए ।
वे नमुना आप बन जाते हैं औरो के लिए।
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ’हरिऔध‘ के द्वारा लिखित कविता ‘कर्मवीर’ से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि वही लोग कर्मवीर कहलाते हैं जो कभी भी अपने समय को व्यर्थ में नहीं बितने देते और ना हीं कोई कार्य छोड़कर कर किसी से बात करते हैं । वे लोग किसी भी कार्य को कल की भरोसे नहीं टालते हैं । जो करना रहता है उसे वह उसी समय कर लेते हैं । कर्मवीर मानव कभी मेहनत करने से अपना जी नहीं चुराते हैं । वहीं लोग इस संसार में एक इकलौता बन जाते हैं । जिसे सारा संसार सम्मान करती है ।
चिलचिलाती धुप को जो चाँदनी देवे बना ।
काम पड़ने पर करे जो शेर का भी सामना ।
जो कि हँस-हँस के चबा लेते हैं लोहे का चना ।
है कठिन कुछ भी नहीं जिनके है जी में यह ठना ।
कोस कितने ही चलें, पर वे कभी थकते नहीं ।
कौन-सी है गाँव जिसको खोल वे सकते नहीं।
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ’हरिऔध‘ के द्वारा लिखित कविता ‘कर्मवीर’ से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं। कि कर्मवीर मानव कितना भी कठिन कार्य क्यूँ ना हो । वे अपने संघर्ष से सरल बना लेते हैं । वे जिस कार्य को करने के लिए निश्चय कर लेते हैं । उसे प्राप्त किए बिना दम नहीं लेते हैं । और ना ही अपना मेहनत करना ही छोड़ते हैं । तब-तक जबतक उनकी मंजिले मिल नहीं जाती है । वे मंजिल को पाने के लिए रास्ते में आय सारे कठिनाईयों को हँसते-हँसते सह लेते पर अपना कार्य को करते ही रहते हैं ।
काम को आरम्भ करके यों नहीं जो छोड़ते ।
सामना करके नहीं जो भूलकर मुँह मोड़ते ।
जो गगन के फूल बातो से वृथा नहीं तोड़ते ।
संपदा मन से करोड़ो की नहीं जोड़़ते ।
बन गया हीरा उन्हीं के हाथ से है कार बन ।
काँच को करके दिखा देते हैं वे उज्वल रतन ।
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ’हरिऔध‘ के द्वारा लिखित कविता कर्मवीर से लिया गया है । इस पंक्ति के माध्यम से कवि कर्मवीर मानव की विशेषता बताते हुए कहते हैं कि वही लोग सफल होते हैं जो किसी कार्य को आरम्भ कर के बीच में ही उसे नहीं छोड़ते हैं । बल्कि पूरा करके हीं छोड़ते हैं । उनका प्रयास तब तक जारी रहता है जब तक मंजिल मिल नहीं जाती । वे असंभव को अपने परिश्रम से संभव बना लेते हैं । वे परिश्रम से संपत्ति अर्जित करते हैं न कि गलत साधन और मार्ग से धन कमाने का प्रयास करते हैं। ऐसे कर्मवीर के समझ बड़े लोगो का दर्प चकनाचूर हो जाता है क्योंकि इनकी कठिन साधन उन्हे महान बना देती है । ये अपने पराक्रम के प्रभाव से सामान्य को असामान्य तथा हीन को महान बना देते है। जैसे सीसा रत्न का संयोग पाकर चमकदार हो जाता है, वैसे ही वे अपने दृढ़ निश्चय एवं कर्मठता से एक नये समाज की स्थापना कर देते हैं । Karmveer class 8th Hindi
पर्वतों को काटकर सड़के बना देते हैं वे ।
सैकड़ो मरूभूमि में नदियाँ बहा देते हैं वे ।
गर्भ में जल-राशि के बेड़ा चला देते हैं वे ।
जंगलो में भी महामंगल रचा देते हैं वे ।
भेद नभ-तल का उन्होंने है बहुत बतला दिया ।
है उन्होंने ही निकाली तार की सारी क्रिया ।
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध के द्वारा लिखित कविता कर्मवीर से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि कर्मवीर मनुष्य अपने संघर्ष के बल पर कठिन-कठिन घाटी में भी राह बना लेते हैं । बंजर भूमि को उपजाऊ बना देते हैं तो सागर को भी पार करने वाली जहाज बना लेते है। तथा जंगलो में शहर का निर्माण कर देते हैं । वे लोग साबित कर देते हैं कि जो लोग संघर्ष करने वाला है। वह जैसा चाहे अपनी चाहत के अनुसार इस संसार को बना सकता है ।
कार्य-स्थल को वे कभी नही पूंछते वह है कहाँ ।
कर दिखाते हैं असंभव को भी संभव वे वहाँ ।
उलझने आकर उन्हे पड़ती हैं जितना ही जहाँ ।
वे दिखाते हैं नया उत्साह उतना ही वहाँ ।
डाल देते हैं विरोध सैकड़ो ही अड़चनें ।
वे जगह से काम अपना ठीक करके ही टले ।
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ’हरिऔध‘ के द्वारा लिखित कविता ‘कर्मवीर’ से लिया गया है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि कर्मवीर कभी कार्य करने की स्थान नहीं पूछते है । वे अपना संघर्ष से असंभव कार्य को भी संभव कर देते हैं । उनलोगों को अपनी कार्य करते समय बहुत सारे बाँधाएँ आती है । पर वह अपनी नई उत्साह के साथ उस कार्य को करते रहते हैं । लोग कितना भी उनका विरोध क्यूँ न करे वे अपना कार्य को कर के ही छाड़ते हैं । Karmveer class 8th Hindi
सब तरह से आज जितने देश हैं फूले-फले ।
बुध्दि, विधा,धन विभव के हैं जहाँ डेरे डले ।
वे बनाने से उन्ही के बन गए इतने भले ।
वे सभी हैं हाथ से ऐसे सपूतो के पले ।
लोग जब ऐसे समय पाकर जनम लेंगे कभी ।
देश की औ‘ जाति की होगी भलाई तभी।
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ’हरिऔध‘ के द्वारा लिखित कविता ‘कर्मवीर’ शीर्षक पाठ से लिया गया है । यहाँ कवि अपने हार्दिक उदगार प्रकट करते हुए कहते हैं कि किसी भी देश की समृद्भि उस देश के निवासी पर निर्भर करती है।
आज संसार में जितने भी देश विधा-बुद्भि, धन-दौलत आदि से सम्पन हैं। उनके पीछे वहाँ की जानता का त्याग, तपस्या परिश्रम तथा निष्ठा है । इन्होंने अपने देश के विकाश के लिए सच्चे दिल से मेहनत की कवि का कहना है कि किसी भी देश की समृद्भि वहाँ के कर्मवीर पुरूष पर निर्भर करती है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति निःस्वार्थ भाव से देश की सेवा करते हैं । कायर और स्वार्थी तो सिर्फ अपना ही पेट भरने के बारे में सोचते है । कवि कहते हैं कि किसी भी देश का भलाई या कल्याण तभी होता है जब वह देश की सेवा करने के लिए कर्मवीर शरीर धारण करते हैं ।
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