इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 हिंदी के पाठ एक कहानी का प्लॉट (Kahani ka plot shivpujan sahay) के सारांश को पढ़ेंगे। जिसके लेखक शिवपूजन सहाय है।
1. कहानी का प्लॉट
प्रस्तुत पाठ ‘कहानी का प्लॉट‘ कहानीकार शिवपूजन सहाय के द्वारा लिखा गया है। इस पाठ में कहानीकार समाज में नारीयो के प्रति तिलक-दहेज का बुरी प्रथा, वृद्ध विवाह आदि समाजिक बुराइयों को बताया गया है। इस कहानी में एक लड़की भगजोगनी की व्यथा को बताया गया है। दहेज के कारण इसकी शादी एक बुढ़े व्यक्ति से कर दी जाती है। जब भगजोगनी जवानी में पहूँचती है, तो वह विधवा हो जाती है और यौवन की अंगड़ाई में अपने सौतेले बेटे की पत्नी बनने का दर्भाग्य स्वीकार कर लेती है।
कहानीकार के गाँव के बगल में एक बूढ़े मुंशी जी रहते थे। उन्हें एक पुत्री थी, जिसका नाम भगजोगनी था। भगजोगनी का नाम उसके रूप के अनुसार था। मुंशी जी के बड़े भाई दारोगा थे। दारोगा जी ने अपनी जिंदगी में ही अपनी सारी कमाई फुंक डाली। उनके मरने के बाद उनके घोड़ी को बेचकर उनका श्राद्ध बड़ी धूम-धाम से मुंशी जी ने किया।
दारोगा जी के जमाने में मुंशी जी भी बहुत घी के दिए जलाए। मुंशी जी भी खुब पैसा लुटाया करते थे। दारोगा जी के मरने के बाद सारी अमीरी खत्म हो गयी। उन्हें कुछ चने चबाकर अपना दिन गुजारना पड़ रहा था। मंशी जी की दशा को देखकर लोग यह भी कहने लगे की थानेदार की कमाई और फूस का तापना दोनों बराबर है। मंशी जी हमेशा अपने शरीर पर इत्र ही मला करते थे। आज यह हालत हो गई है कि चुल्लु भर कड़वा तेल भी नसीब नहीं होती है। दारोगा जी के जमाने में मुंशी जी के चार-पाँच लड़के हुए लेकिन सब सुबह के चिराग हो गए। जब मुंशी जी सुख में थे, तो कोई खाने वाला नहीं था। दारोगा जी के मरते ही एक लड़की पैदा हो गई। इसलिए कहानीकार ने कहा है- ‘किस्मत की फटी चादर का कोई रफूगर नहीं है।‘
कहानीकार कहता है कि तिलक-दहेज के जमाने में लड़़की पैदा करना बड़ी मुर्खता है। जब मुंशी जी घी और पैसे लुटाते थे तब केवल लड़का ही पैदा होता था, लेकिन अब सŸा खाने को मजबूर हो गए तब लड़की पैदा हो गई। यह सच है कि अमीरी की कब्र पर पनपी हुई गरीबी बड़ी जहरीली होती है।
भगजोगनी अमीर थी, लेकिन भाग्यहीन थी। उसके जन्म लेते ही माँ के दूध से वंचित हो गई और मुंशी जी के गरीबी में पैदा हुई। कहानीकार उसे ग्यारह-बारह वर्ष की आयु में उसे देखा था। वह बहुत ही सुंदर लड़की थी।
एक ओर कहानीकार उसकी अपूर्व सुन्दरता पर अभिभूत हो जाता है तो दूसरी ओर उसकी दर्दनाक गरीबी देखकर उनका कलेजा काँप जाता है। बेचारी उस उम्र में कमर में सिर्फ एक पतला चिथड़ा-सा लपेटे हुए थी, जो मुश्किल से उसकी लज्जा ढंकने में समर्थ थी। उसके सिर के बाल तेल बिना बुरी तरह बिखरकर बड़े डरावने हो गए थे । उसकी आँखों में अजीब ढंग की करूण-कातरता थी, जैसे दद्रिता-राक्षसी ने उस सुन्दर सुकुमारी का गला टीप दिया हो। इसीलिए कहा गया है-प्रकृत सुन्दरता के लिए कृत्रिम शृंगार की जरूरत नहीं होती, पर भगजोगनी गरीबी की चक्की में पिसी हुई थी, भला उसका सुंदरता कैसे खिल सकता था। वह तो दाने-दाने के लिए तरसती थी, एक बित्ता कपड़े के लिए मुहताज थी। सिर में लगाने के लिए एक चुल्लू अलसी का तेल भी सपना हो रहा था । महीने के एक दिन भी भरपेट खाने को नहीं मिलता था। उसकी सुंदरता बहुत थी, पर वह इतनी पतली थी कि सुंंदरता प्रतीत नहीं हो रहा था।
मुंशीजी अपना दुखड़ा लेखक को सुनाते हुए फूट-फूटकर रोने लगते हैं तथा बताते है कि बड़ी मुश्किल से दिन में एक-दो मुट्ठी चबेना मिल पाता है। स्थिति इतनी दयनीय है कि किसी की दी हुई मुट्ठी भर भीख लेने के लिए इसके शरीर पर फटा आँचल भी तो नहीं है। कभी-कभी भीख न मिलने के कारण भूखे रात गुजारनी पड़ती है। मेरी इस दुर्गति पर कोई रहम करने वाला नहीं है, उलटे सब लोग ताने के तीर बरसाते हैं । एक दिन वह था कि भाई साहब के पेशाब से चिराग जलता था और एक दिन यह भी है कि मेरी हड्डियाँ मुफलिसी की आँच से मोमबत्तियों की तरह घुल-घुलकर जल रही हैं। इस लड़की के हाथ पीले करने के लिए हाथ जोड़कर लोगों की बिनती की, पैरों पड़ा, इसकी सुन्दरता के बारे में बताया, परन्तु लाख गिड़गिड़ाने के बावजूद किसी का दिल न पिघला। उलटे दोष मढ़ने लगते हैं कि गरीब घर की लड़की चटोर तथा कंजूस होती है, जिस कारण खानदान बिगड़ जाएगा, फिर बिना तिलक-दहेज के तो बात करना भी नहीं चाहते हैं।
लेखक गलत सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करता हुआ कहता है कि यह कितनी बड़ी दुख की बात है कि जो लोग मोल-भाव करके लड़के की बिक्री करते हैं, वे भले आदमी समझे जाते हैं; और कोई गरीब उसी तरह मोल-भाव करके लड़की को बेचता है तो वह कमीना माना जाता है। यही तो आज की सामाजिक व्यवस्था है। अपनी विवशता की कहानी लेखक को सुनाते-सुनाते गला बंधा गया और भगजोगनी को गोद में बैठाकर फूटफूटकर रोने लगे।
मुंशीजी की दुख भरी कहानी सुनने के बाद उस सुंदरी गरीब कन्या से विवाह करने के लिए लेखक ने भी अपने कई मित्रों से आग्रह किया, लेकिन सबने उनकी बात अनसुनी कर दी, तब मुंशीजी ने अपनी छाती पर पत्थर रखकर इकतालीस-बयालीस साल के व्यक्ति के हाथों सौंपकर शादी की रस्में पूरी की। साल पूरा होते-होते मुंशीजी भी चलते बने। गाँववालों ने गले में घड़ा बाँधकर उन्हें नदी में डुबा दिया।
भगजोगनी का सौन्दर्य जब निखरा तब वह विधवा हो गई और उसने जवानी के उन्माद में सारी मर्यादाओं को तोड़कर अपना सबकुछ अपने सौतेले बेटे को सुपुर्द कर उसे पति रूप में स्वीकार कर लिया।
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