इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 हिंदी के पाठ ग्यारह ‘कबीर के पद’ (Kabir Ke Pad class 8th Hindi) के अर्थ को पढ़ेंगे। जिसके लेखक कबीर जी है।
11.कबीर के पद
कबिर भक्तिकाल के ज्ञानाश्रयीशाखा के निर्गुणोपासक कवि थे। इन्होने अपनी रचनाओं के माध्यम से भक्ति के नाम पर व्याप्त बाहा्रडंबर एवं अनुष्ठानों पर करारा प्रहार किया है। उनका मानना है कि ईश्वर निराकार एवं सर्वव्यापी है। उसका निवास हर प्राणी के ह्रदय में होता है। कबीर कहते है कि ईश्वर का निवास किसी मंदिर, मस्जिद या धार्मिक तीर्थो मे नहीं होता और न ही वह किसी बाहरी दिखावे में होता है।
तेरा मेरा मनुआँ कैसे इक होई रे।
मैं कहता है आँखिन देखी, तू कहता कागद की लेखी।
मैं कहता सुरझावनहारी, तू राख्यौ उरझाई रे।
मैं कहता तू जागत रहियों, तू रहता है सोई रे।
मै कहता तू निर्मोही रहियों, तू जाता है मोही रे।
जुगन-जुगन समुझावत हारा, कही न मान त कोई रे।
सतगुरू धारा निर्मल बाहै, वामैं काया धोई रे।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे।
प्रस्तुत पद निर्गुण संत कवि कबीर द्वारा लिखित ‘कबीर के पद’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इस पद के माध्यम से कवि ने मानव जीवन की सच्चाई का बोध कराने का प्रयास किया है। Kabir Ke Pad class 8th Hindi
कबीर का कहना है कि व्यक्ति अपनी अज्ञानता और मूढ़ता के कारण सत्य को असत्य तथा असत्य को सत्य मानने के कारण जन्म-मृत्यु का चक्कर लगाता रह जाता है अर्थात् भवसागर से निकल नहीं पाता है जबकि कबीर अपना अनुभव बताते हुए मानव को जागरूक बनाने का प्रयास करते है। कबीर लोगो को कहते है। ये मुर्ख मानव इस संसार के सभी मोह माया को छोड़ दो। तभी जा के तुम इस संसार से मुक्ति पा सकते हो।
माको कहाँ ढूंढे बंदे मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, न काबे कैलास में।
नातो कौनों क्रिया करम में नाहिं जोग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतहि मिलिहौ, पलभर की तलास में।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, सब साँसों की साँस में।
प्रस्तुत पद निर्गुणवादी संत कवि कबीर द्वारा लिखित ‘कबीर के पद’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसमें ईश्वर के निवास स्थान के विषय में कहा गया है। कबीर का मानना है कि ईश्वर संसार के कण-कण में व्याप्त है जिसके न तो कोई रूप् है और न रंग ही वह निराकार है। इसी बात को लक्ष्य कर यह बताया गया है कि ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, काबा तथा कैलास में ढ़ूँढ़ना व्यर्थ है। ईश्वर तो हर क्षण हमारे ह्रदय में वि़द्द्यमान रहता है। ईश्वर न तो कर्मकारण करने से मिलता है और न ही योग-साधना एवं बैरागी बनने से। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए तो तीव्र आंतरिक ललक और सच्चा दिल का होना अनिवार्य बताया गया है। कबीर के कहने का अभिप्राय है कि ईश्वर प्रेम का भूखा होता है। जब कोई व्यक्ति प्रेमपूर्व सच्चे दिल से उसे खोजता है तो वह तत्क्षण मिल जाता है। ईश्वर तो मनुष्य की हर सांस में रहता हैं।
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