इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 10 विज्ञान के पाठ जनन (Janan class 10 science notes) के प्रत्येक टॉपिक के व्याख्या को पढ़ेंगे।
6. जनन
जीव जिस प्रक्रम द्वारा अपनी संख्या में वृद्धि करते है, उसे जनन कहते हैं।
जनन के प्रकार- जीवो में जनन मुख्यातः दो तरीके से संपन्न होता है-लैंगिक जनन तथा अलैंगिक जनन
अलैंगिक जनन
1. अलैंगिक जनन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है-
2. इसमें जीवो का सिर्फ एक व्यष्टि भाग लेता है।
3. इसमें युग्मक अर्थात शुक्राणु और अंडाणु कोई भाग नहीं लेते हैं।
4. इस प्रकार के जनन में या तो समसूत्री कोशिका विभाजन या असमसूत्री कोशिका विभाजन होता है।
5. अलैंगिक जनन के बाद जो संताने पैदा होती है वे आनुवंशिक गुणों में ठीक जनकों के समान होते हैं।
6. इस प्रकार के जनन से ज्यादा संख्या में एवं जल्दी से जीव संतानो की उत्पत्ति कर सकते हैं।
7. इसमें निषेचन की जरुरत नहीं पड़ती है।
जीवो में अलैंगिक जनन निम्नांकित कई विधियों से संपन्न होता है।
1. विखंडन- विखंडन के द्वारा ही मुख्य रूप से एक कोशिकीय जीव जनन करते हैं। जैसे- जीवाणु,अमीबा,पैरामीशियम, एक कोशिकीय शैवाल, युग्लीना आदि सामान्यतः विखंडन की क्रिया द्वारा ही जनन करते हैं।
विखंडन की क्रिया दो प्रकार से संपन्न होती है
1. द्विखंडन एवं
2. बहुखंडन
(क) द्विखंडन या द्विविभाजन- वैसा विभाजन जिसके द्वारा एक व्यष्टि से खंडित होकर दो या अधिक का निर्माण होता हो, उसे द्विखंडन या द्विविभाजन कहते हैं।
जैसे- जीवाणु, पैरामीशियम, अमीबा, यीस्ट, यूग्लीना आदि में द्विखंडन विधि से जनन होता है।
(ख). बहुखंडन या बहुविभाजन- वैसा विभाजन जिसके द्वारा एक व्यष्टि खंडित होकर अनेक व्यष्टियों की उत्पिŸा करता हो, उसे बहुखंडन या बहुविभाजन कहते हैं। जैसे- अमीबा, प्लैज्मोडियम (मलेरिया परजीवी) आदि में बहुखंडन विधि से जनन होता है।
1. मुकुलन- मुकुलन एक प्रकार का अलैंगिक जनन है जो जनक के शरीर से कलिका फुंटने या प्रवर्ध निकलने के फलस्वरूप संपन्न होता है। जैसे- यीस्ट
2. अपखंडन या पुनर्जनन- इस प्रकार के जनन में जीवों का शरीर किसी कारण से दो या अधिक टुकड़ों में खंडित हो जाता है तथा प्रत्येक खंड अपने खोए हुए भागों का विकास कर पूर्ण विकसित नए जीव में परिवर्तित हो जाता है। जैसे- स्पाइरोगाइरा, प्लेनेरिया आदि में जनन अपखंडन विधि से होता है।
3. बीजाणुजनन- इस प्रकार के जनन में सामान्यतः सूक्ष्म थैली जैसी बीजाणुधानियों का निमार्ण होता है। हवा के द्वारा इनका प्रकीर्णन दूर-दूर तक होता है। अनुकूल जगह मिलने पर बीजाणु अंकुरित होते हैं तथा उनके भीतर की कोशिकीय रचनाएँ बाहर निकलकर वृ़द्ध करने लगती है। जब ये विकसित होकर परिपक्व हो जाती है तो इनमें पुनः जनन करने की क्षमता पैदा हो जाती है। जैसे- राइजोपस में बीजाणुजनन होता है।
पौधों मे कायिक प्रवर्धन
जनन की वह प्रक्रिया जिसमें पादप शरीर का कोई कायिक या वर्धी भाग जैसे जड़, तना, पत्ता आदि उससे विलग और परिवर्द्धित होकर नए पौधे का निर्माण करता है, उसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।
लैंगिक जनन- जनन की वह विधि जिसमें नर और मादा भाग लेते हैं, उसे लैंगिक जनन कहते हैं।
लिंग के आधार पर जीवों को दो वर्गों मे बाँटा गया है-
1. एकलिंगी और 2. द्विलिंगी
1. एकलिंगी- वे जीवजिनमें नर और मादा लिंग अलग-अलग जीवों में पाया जाता है, उसे एकलिंगी कहते हैं। जैसे- पपीता, तरबूज, मनुष्य, घोड़ा, बंदर, कबूतर आदि।
2. द्विलिंगी- वे जीव जिसमें नर और मादा लिंग एक ही व्यष्टि में होता है, उसे द्विलिंगी कहते हैं। जैसे-सरसों, केंचुआ, हाइड्रा आदि।
Janan class 10 science notes
पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन
लैंगिक जनन के लिए पुष्पी पौधों में फूल ही वास्तविक जनन भाग है। पौधों के पुष्पों में ही जनन अंग उपस्थित होते हैं।
फूल जिस तने से जुड़ा रहता है, वह वृंत कहलाता है। वृंत का ऊपरी फैला हुआ भाग पुष्पासन कहलाता है, जिस पर संपूर्ण पुष्प टिका रहता है।
पुष्प के चार भाग होते हैं-
1. बाह्य दल पुंज, 2. दलपुंज, 3. पुमंग और 4. जायांग
1. बाह्य दल पुंज- पुष्प का सबसे बाहरी भाग होता है। इसका रंग हरा होता है।
2. दलपुंज- बाह्य दल पुंज का ऊपरी भाग होता है। यह रंगीन होता है।
3.पुमंग- यह पुष्प का नर भाग है। इनमें लंबी-लंबी रचनाएँ पाई जाती है, जिसे पुंकेसर कहते हैं।
पुंकेसर के दो भाग होत हैं-
1. तंतु- यह लचीला, पतला, लंबा तथा डोरे के समान होता है और पुष्पासन से जुड़ा होता है।
2. परागकोश- तंतु के अग्रभाग परागकोश कहलाता है। इसके अंदर परागकण होते हैं, जो निषेचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
3. जायांग- यह पौधों का मादा भाग है। यह कई स्त्रीकेसर से मिलकर बना होता है। स्त्रीकेसर अंडाशय, वर्तिका और वर्तिकाग्र में बँटे होते हैं।
निषेचन- नर युग्मक और मादा युग्मक के संगलन को निषेचन कहा जाता हैं।
मनुष्य का प्रजनन अंग- मानव जननांग साधारणतः लगभग 12 वर्ष की आयु मे परिपक्व एवं क्रियाशिल होने लगते हैं। इस अवस्था में बालक-बा
लिकाओ के शरीर में कुछ परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता हैं। यह अवस्था किशोरावस्था कहलाता हैं।
लैंगिक जनन संचारित रोग- यौन संबंध से होनेवाले संक्रामक रोग को लैंगिक जनन संचारित रोग कहते हैं।
बैक्टीरिया-जनित रोग- गोनोरिया, सिफलिस, यूरेथ्राइटिस तथा सर्विसाइटिस आदि।
वाइरस-जनित रोग- सर्विक्स कैंसर, हर्पिस तथा एड्स आदि।
प्रोटोजोआ-जनित रोग-स्त्रियों के मूत्रजनन नलिकाओं में एक प्रकार के प्रोटोजोआ के संक्रमन से होने वाले रोग ट्राइकोमोनिएसिस है।
- मुकुलन द्वारा प्रजनन यीस्ट में होता है।
- पूष्पी पौधे में लैंगिक जनन फूलों द्वारा होता है।
- द्विखण्डन विधि द्वारा जनन अमीबा में होता है।
- पुष्प में परागकरण पुंकेसर में बनते हैं।
- पुष्प के अंडाश्य भाग से फल बनता है।
- हाइड्रा में अलैंगिक जनन मुकुलन विधि द्वारा होता है।
- पुष्प का नर जननांग पुंकेसर कहलाता है।
- पपीता एकलिंगी पुष्प है।
- पुनरुद्भवन का उदाहरण हाइड्रा है।
- परागकोश में परागकण होते हैं।
- हाइड्रा में प्रजनन मुकुलन विधि द्वारा होता है।
- पौधे में जनन अंग पुष्प में पाए जाते हैं।
- यीस्ट में द्विखण्डन नहीं होता है।
- परागकण, परागकोष के अंदर होता है।
- अंडाणु अंडाशय में निषेचित होता है।
- शुक्रवाहिका मादा को जनन तंत्र नहीं है।
- शुक्राणु का निर्माण वृषण में होता है।
- स्त्रियों में लिंग गुणसुत्र का युग्म ग्ग् और पुरूष में लिंग गुणसुत्र का युग्म ग्ल् होता है।
- केंचुआ एक उभयलिंगी जन्तु है।
- अंडाणु अंडाशय में निषेचित होता है।
- हाइड्रा में प्रजनन मुकुलन विधि से होता है।
- अमीबा में अलैंगिक जनन विखंडन विधि से होता है।
- सिफलिस, एड्स और गोनोरिया जनन संचारित रोग है।
- गोनोरिया और सिफलिस जीवाणु जनित रोग है।
- मस्सा जीवाणु जनित रोग है।
- डेंगू उत्पन्न करने वाले मच्छर साफ जल में रहते हैं।
- प्लैज्मोडियम मलेरिया परजीवी रोग है।
- आयोडीन की कमी से घेघा रोग होता है।
Janan class 10 science notes
Read class 9th Hindi – Click here
Watch video – Click here
Leave a Reply