इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 हिंदी के पाठ दस ‘ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से’ (Irshya Tu Na Gayi Mere Man Se) के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे। जिसके लेखक राम-धारी सिंह ‘दिनकरा’ जी है।
10 ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से
‘ईर्ष्या : तू न गई मेरे मन से एक निबंध है जिसके रचना कार राम-धारी सिंह ‘दिनकरा’ जी है। इस निबंध के माध्यम से लेखक मानव को ईर्ष्या करने से क्या-क्या होती हैं। इसके बारे में बताते है। वह कहते है कि ईर्ष्या करने वाला व्यक्ति कभी खुश नहीं रहता हैं।
लेखक के घर के दाहिने एक वकील रहते थे। जो हर प्रकार से सुखी सम्पण थे गाड़ी बंगला आदि सब कुछ था। उनके पास सभा-सोसाइटी आदि में भी बहुत भाग लेते थे इतना कुछ होने के बावजूद भी वह खुश नहीं रहते थे। क्योंकि वह एक ईर्ष्यालु व्यक्ति थे वकील साहब के बगल में जो बीमा एजेंट था। उसके विभव की वृद्धि से वकील साहब का हमेशा कलेजा जलता रहता था। जिसके कारण वह अपने सम्पती का लाभ भी नही कर पा रहे थे।
ईर्ष्या की बड़ी बेटी का नाम निंदा है। ईर्ष्यालु व्यक्ति के पास ही निंदा भी होती है। वह जिस व्यक्ति से ईर्ष्या करता है। यदि उस व्यक्ति का नाम कोई समाज में आदर से रखता है। तथा वह उसके नाम पर निंदा करना शुरू कर देता है। जिससे उसके नाम समाज की नजरों से गिर जाए। और जो स्थान खाली होगा वहाँ मेरा नाम होगा। निंदा करने वाला व्यक्ति हमेशा यहीं सोचकर दूसरों की निंदा करता है। पर ऐसा होता नहीं हैं। जो लोग अपने मेहनत के बल पर अपने नाम को आगें बढ़ाते है। वह कभी भी दूसरा कोई कितना भी निंदा कर दे कम नहीं होती है। ईर्ष्या का काम जलना है पर सबसे पहले वह उसी को जलाती हैं। जिसके अंदर रहती है। Irshya Tu Na Gayi Mere Man Se
चिंता को लोग चिंता कहते हैं। जिसे किसी को भी प्रचंड चिंता ने पकड़ लिया है। उस बेचारे की जिन्दगी ही खराब हो जाती है। किंतु ईर्ष्या शायद चिंता से भी बदतर चीज हैं। क्योकि वह मनुष्य के मौलिक गुणो को ही कुंठित बना डालती है। ईर्ष्या का संबंध बराबर की व्यक्तियों से होती है। क्योकि भिखमंगा करोड़पती से ईर्ष्या नहीं करता है। प्रति द्वंदियों से भी मनुष्य का विकास होता है। यदि वह अपने कमी को महसूस करके उसको पूर्ति करना चाहे तब।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर कहते है। ‘तुम्हारी निंदा वही करेगा, जिसकी तुमने भलाई की है।
नीत्से लोगो को जो ईर्ष्यालु है। उसे बजार की मक्खियाँ कहते है। वह कहते है ऐसा आदमी मुँह पर प्रशंसा तथा पीछे में निंदा किया करते है। यह एक और बात कहते है। कहते है कि ‘आदमी में जो गुण महान समझे जाते हैं। उन्ही के चलते लोग उससे जलते भी हैं। नीत्से कहते है कि ‘बजार की मक्खियों को छोड़कर एकांक की ओर भागो। जो कुछ भी अमर तथा महान है। उसकी रचना और निमार्ण बाजार से दूर यानी गलत किस्म के व्यक्तियों से दूर रहकर ही किया जा सकता है। यह तो ईष्यालू लोगों से बचने के उपाय है।
लेकिन ईष्या से बचने के लिए खुद को मांसिक अनुसाशन रहना होगा। दूसरों के बारे में फालतू की बाते छोड़नी होगी। तथा ईर्ष्या से बचा जा सकता है। ईष्यालू कभी भी खुश नहीं रहते है इसलिए हमलोगों को ईष्या नहीं करनी चाहिए।
Irshya Tu Na Gayi Mere Man Se
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