इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 हिंदी पद्य भाग के पाठ तीन ‘गुरु गोविन्द सिंह पद’ (Guru Govind Singh ke pad class 9 Hindi) के अर्थ को पढ़ेंगे। जिसके लेखक गुरु गोविन्द सिंह है।
पाठ –15
कवि – गुरु गोविन्द सिंह
जन्म :- पटना में सन् 1666 में हुआ। पटना में ही माता गुजरी ने उन्हें गुरुमुखी सिखाइए।
उनका मूल नाम :- गोविन्द राय था।
निधन :- 1708 ई. में।
प्रमुख कृतिया :- ‘जापू साहिब ‘, ‘अकाल उसतती’ , ‘विचित्र नाटक’, ‘चंडी चरित्र’, ‘ज्ञान प्रबौद्ध’, ‘शास्त्रनाममाला’, ‘चौपाई’, ‘जफरनामा’
1706 ई. में और रंग जेब को लिखा गया पत्र हैं जो खूब प्रसिद्ध हुआ।
उनकी भाषा :- प्रधानता पंजाबी मिश्रित ब्रज भाषा हैं किन्तु अरबी फरसी और संस्कृत शब्दों के प्रयोग हुए।
विशेष :- 1699 ई. में आनंदपुर के केशव गढ़ नामक स्थान पर दयाराम,धर्मदास,मोहनचंद,,साहिबचंद्र हिम्मत इन पाँच सिखों को मृत्युजई बनाकर ‘सिंह’ बनाया और गोविंद राय से गोविंद सिंह बने।
गुरुगोविन्द सिंह :- सीखो के दशवे तथा अंतिम गुरु थे।
पाठ -15
पद
कोऊ भयो मुंडिया संन्यासी, कोऊ जोगी भयो,
कोऊ ब्रह्मचारी , कोऊ जतियन मानबो ।
हिंदू तुरकं कोऊ राफजी इमाम साफी ,
मानस की जात सबै एकै पहचानबो ।
करता करीम सोई राजक रहीम ओई ,
दूसरो न भेद कोई भूल भ्रम मानबो ।
एक ही सेव सबही को गुरुदेव एक ,
एक ही सरूप सबै, एकै जोत जानबो।
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ सिखों के दसवें तथा अंतिम गुरु ‘ गुरु गोविंद सिंह’ के द्वारा रचित “पद” से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि मानवीय एकता के संबंध में अपना विचार प्रकट किया है।
प्रथम पद में गुरु गोविंद सिंह कहते हैं कि कोई आदमी सन्यासी हो गया, कोई जोगी हुआ, कोई ब्रह्मचारी, कोई यति, (जोगी) को मानता है। हिंदु तुर्क कोई जो अपने स्वामी को पीड़ित देख कर भाग जाता है। कोई इमाम अर्थात इस्लाम धर्म का पुरोहित बन जाता है। कोई शुद्ध करने वाला सभी मनुष्य की ही जाती है। सभी को एक ही जानता हूँ। जो कृपा करने वाला भगवान है। वही राज करने वाला, वही दया करने वाला है। वह किसी एक दूसरे में भेद नहीं करता है। एक ही सेवा करने जोग्य है, वह गुरुदेव है। मैं उसे एक स्वरूप में जानता हूँ जिसकी ज्योति जलाई जा सके। Guru Govind Singh ke pad class 9 Hindi
पाठ –15 का
श्लोक –2
जैसे एक आग ते कनूका कोट आग उठे ,
न्यारे न्यारे है कै फेरि आगमै मिलाहिंगे
जैसे एक धूरते अनेक धूर धूरत हैं,
धूरके कनूका फेर धूरही समाहिंगे ।
जैसे एक नदते तरंग कोट उपजत हैं,
पान के तरंग सब पानही कहाहिंगे ।
तैसे विस्वरूप ते अभूत भूत प्रगट होइ,
ताही ते उपज सबै ताही मैं समाहिंगे ।
भावार्थ :-
प्रस्तुत पंक्तियाँ गुरु गोविंद सिंह के द्वारा लिखित पद से लिया गया है। इस पंक्तियों के माध्यम से कवि ने जीवन मरण के महान दार्शनिक पक्ष को उद्घाटित किया है।
कवि का कहना है कि संसार अनित्य है। सिर्फ ईश्वर ही सत्य है। जैसे एक कण चिंगारी से करोड़ो आग जल उठता है,वह निराला है, फिर वह उसी आग में मिल जाता है, वैसे एक धूल अनेक धूल का निर्माण करते हैं, वैसे ही धूल के कण फिर उसी धूल में समा जाते हैं, जिस प्रकार एक नदी में करोड़ों तरंग की उपजाते हैं,और फिर वही पानी की तरंग उसी पानी के कहे जाते हैं। वैसे ईश्वर जो भूत नहीं हुआ प्रकट होकर जिससे उपजाता है, उसी में सामा जाता है। कवि इस पंचभौतिक शरीर वालों के संबंध में अपना विचार प्रकट करते हुए कहते हैं कि यह जहाँ से आता है, मरुणोप्रान्त पुनः उसी में मिल जाता है।
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