इस पोस्ट में हमलोग झारखण्ड बोर्ड के हिन्दी के पद्य भाग के पाठ सात ‘छाया मत छूना कविता का भावार्थ कक्षा 10 हिंदी’ (JAC board class 10 Hindi Chhaya mat chhuna class 10 explanation) के व्याख्या को पढ़ेंगे।
7. छाया मत छूना
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त 1918 को मध्य प्रदेश के गुना नगर में हुआ था। इन्होंने अपनी शिक्षा झाँसी, उत्तर प्रदेश से प्रारंभ कर लखनऊ में अंग्रेजी एम.ए. और वकालत की परीक्षा पास की। इनकी प्रसिद्ध काव्य संग्रह है। नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, भीतरी नई की यात्रा। इनकी मृत्यु 1994 में हुआ।
पाठ परिचय- प्रस्तुत कविता अतित की यादों को भूल कर वर्तमान का सामना कर भविष्य का चुनाव कर संदेश देती है। जीवन में हमारे सुख और दुःख दोनों की उपस्थिति रहती है। मनुष्य जितना यश, ऐश्वर्य-धन, सम्मान आदि पाने के विषय में सोचता है। वह उतना ही भ्रमित होता है और जीवन को सुखी बनाने के लिए मनुष्य को कर्म (संघर्ष) करने का उद्देश्य देती है। Chhaya mat chhuna class 10
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण-
छाया मत छूना मन, होगा दुख दूना।
भावार्थ- कवि आशा के साथ संदेश देते हुए कहता है कि जीवन में कभी सुख तो कभी दुःख आता है। जीवन में जो बीत गया है वह सुखों और दुःखों को याद करके बढ़ाने से कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि उसे याद करने से हमारी समस्याएँ और बढती है। मानाकि हमारे बीते हुए दिन बहुत ही सुहावनी थी। रंग-बिरंगी सुहावनी यादें आस-पास के सुहावनी गंध भरें चित्र चारों ओर फैली हुई है, लेकिन अब उसे याद करने से क्या फायदा। वह सारी तारों भरी सुंदर रात बीत गई। उसकी सिर्फ सुंदर यादें रह गई है। उसी तरह प्रिया के बालों में लगे फुलों की खुश्बु भी यादें हीं शेष बच गई है। आज दुःख के इन पलों में वो भूली हुई सुख भरी यादें एक जीवित पल बनकर मन को छू जाती है, लेकिन तुम सिर्फ उन्हीं में मत खोया रह, जो कुछ जीवन में तेरे पास है। उसी से अपने भविष्य का निर्माण कर। उन छायाओं को याद करके मन को दुगुना दुःख मिलता है, लेकिन इससे बच।
यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
छाया मत छूना मन, होगा दुख दूना।
भावार्थ- जीवन में आशावादी दृष्टिकोण अपनाने की सीख देते हुए कवि कहते हैं कि माना आज जीवन में न वैभव है और न यश। न धन-दौलत ना हिं मान-सम्मान। लेकिन इन्हीं सब चीजों के पिछे मनुष्य दौड़ता है। इन्हें पाने के लिए भटकता है। सम्मान पाने के लिए लोग रेगिस्तान में भटके हिरण की तरह ईधर-उधर भटकता रहता है। हर सुखी इंसान के पिछे दुःख भरी कहानी छिपी होती है। इसी तरह हर सुख भरी चाँदनी रात के पिछे दुःख भरी काली रात छिपी रहती है। इसलिए तुम सुख भरी दिनों को याद करके दुःख में मत डुबो। आज जो सामने दुःख भरी पल आ रही है, तुम उसका सामना कर, सच्चाई से अपना मुँह मत मोड़ो। क्योंकि बीते हुए सुख को याद करके दुःख और बढ़ेगी।
दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना मन, होगा दुख दूना।
भावार्थ- कवि कहते हैं कि हे मनुष्य ! साहस होते हुए भी तेरा मन दुविधाग्रस्त है। तुम्हें सफलता वाली रास्ता दिखाई हीं नहीं दे रहा है। और शरीर तो तुम्हारी पूरी तरह से स्वस्थ्य है, लेकिन फिर भी मन में जो दुःख है वो कभी खत्म नहीं हो रहा है। मन के दुःखों का अत ही नहीं है।
हमारे जीवन में दुःख ही दुख है। सुहावनी रात के आने पर भी सुख रूप में दिखे चाँद उदित नहीं हुआ है और बसंत ऋतु में जो फुल खिला है उससे भी दुःखी मत हो क्योंकि जो सुख तुम्हें जीवन में मिला ही नहीं, उसे भूल ही जाना बेहतर है। इसलिए जो कुछ भी मिल रहा है, उसे ही खुश होकर अपनाओं और वŸार्मान का सामना करके अपने भविष्य को आगे बढ़ाओं। Chhaya mat chhuna class 10
Read class 9th Hindi – Click here
Watch video – Click here
Leave a Reply