इस पोस्ट में झारखण्ड बोर्ड कक्षा 10 के सामाजिक विज्ञान इतिहास के पाठ दो भारत में राष्ट्रवाद (Bharat me rashtravad class 10 notes) के Book Solutions पढ़ेंगे।
पाठ-2
भारत में राष्ट्रवाद
संक्षेप में लिखें।
प्रश्नः 1. व्याख्या करेंः-
(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी।
उत्तर:- उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई थी क्योंकि इसके निम्नलिखित कारण थे।
उपनिवेशों के अंतर्गत उत्पीड़न और दमन के कारण विभिन्न समूहों को संगठित होना पड़ा और उपनिवेश विरोधी आंदोलन चलाया जाने लगा। औपनिवेशिक शासकों के विरूद्ध संघर्षो के दौरान लोगों ने आपसी एकता को पहचाना। और एकजुट होकर वे विदेशी लोगों को अपने देश से निकाल कर प्रयास करने लगे। उनका यह प्रयास असफल रहा लेकिन लंबे संघर्ष के बाद 1947 में आजादी मिली।
(ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया।
उत्तर:- पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में निम्नलिखित प्रकार से योगदान दिया हैं।
पहले विश्व युद्ध का भारत राष्ट्रीय आंदोलन पर व्यापक प्रभाव पड़ा। 1 अगस्त 1914 ई० को मित्र राष्ट्रों-ब्रिटेन, फ्रांस, रूस जापान, अमेरिका आदि और दूसरी तरफ धुरी राष्टों-ऑस्ट्रिया, जर्मनी, हंगरी, तुर्की आदि के बीच पहले विश्व युद्ध हुआ । अंग्रेजी सरकार नें भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट 1915 ई० में लागू किया इसके बाद क्रांतिकारी आंदोलन कम होने के बजाय और तेज हो गया ।
1918 ई० में से 1921 ई० मे सारे देश में अकाल सूखा तथा बाढ़ के कारण भंयकर संकट का सामना करना पड़ रहा था । चारों तरफ महामारी के कारण लोग मारे जा रहे थे अंग्रेजी शासन से इस संकट की स्थिति में कोई सहायता नहीं मिल पा रही थी अतः उन्होंने एकजूट होकर राष्ट्रीय आंदोलन में सहयोग दिया पहले युद्ध के कारण राष्ट्रीय आदोलन बहुत तीव्र हो गया लोकमान्य तिलक और एनी बेसेंट जैसे नेताओं के साथ मिलने के कारण कांग्रेस के द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन को और अधिक नया उत्साह मिला ।
(ग) भारत के लोग रॉलट एक्ट विरोध में क्यों थे।
उत्तर – भारत के लोग निम्नलिखित कारणों से रॉलट एक्ट के विरोध में थे। अंग्रेजी सरकार ने 1918 ई० में रॉलट की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की इस समिति को यह निर्देश दिया गया कि भारत में क्रांतिकारी आंदोलनों को रोकने के लिए किस तरह के कानून बनाए जाएँ क्योंकि देश का कानून अपर्याप्त है।
रॉलेट एक्ट ने अंग्रेज सरकार को यह अधिकार दे दिया था कि वह किसी भी व्यक्ति पर बिना मुकदमा किए जेल में डाल दे। इस कानून में किसी वकील, दलील और अपील की अनुमति नहीं थी। यह कानून भारतीय राष्ट्रवादयों को दबाने के लिए लाया गया था। यह एक दमनकारी कानून था। इसी सब कारणों के कारण भारतीय लोग इसका विरोध कर रहे थे।
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(घ) गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया।
उत्तरः- गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला निम्नलिखित कारणों से लिए।
5 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन के क्रांतिकारियों का जुलूस शांतिपूर्ण रूप से उत्तर प्रदेश के गोरखक जिले के चौरी-चौरा से गुजर रहा था। लेकिन अचानक यह जुलूस पुलिस के साथ हिंसक झड़प में बदल गया। इस हिंसक झड़प में 22 पुलिस कर्मियों की जान चली गई। तथा कुछ लोग घायल भी हो गए थे।
गाँधी जी इसी हिंसक घटना के वजह से असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला लिए।
2 . सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?
उत्तरः- सत्याग्रह के विचार का मतलब निम्नलिखित है।
महात्मा गाँधी जनवरी 1915 में भारत लौटे। इससे पहले वे दक्षिण अफ्रीका में थे। उन्होंने एक नए तरह के जनांदोलन के रास्ते पर चलते हुए वहाँ की नस्लभेदी सरकार के सफलता पूर्वक लोहा लिया था। इस पद्धति को वे सत्याग्रह कहते थे।
सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर जोर दिया जाता था। इसका अर्थ यह था कि अगर आपका उद्देश्य सच्चा है। यदि आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यक नहीं है। प्रतिशोध की भावना या आक्रामकता का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता हैं। इसके लिए दमनकारी शत्रु की चेतना को झिंझोड़ना चाहिए। उत्पीड़क शत्रु को ही नहीं बल्कि सभी लोगों को हिंसा के जरिए सत्य को स्वीकार करने पर विवश करने की बजाय सच्चाई को देखना और सहज भाव से स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इस संघर्ष में अंततः सत्य की ही जीत होती है।
3 . निम्नलिखित पर अखबार के लिए रिपोर्ट लिखेंः-
(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांडः-
उत्तरः- जलियाँवाला बाग हत्याकांड
संपादक
हिंदुस्तान टाइम्स
दिल्ली
महोदय,
13 अप्रैल 1919 ई० की शाम को जलियाँवाला बाग में भयंकर हत्याकांड हुआ। इस अमानवीय, क्रूरतापूर्ण और निंदनीय कार्य में हजारों निर्दोष व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया गया।
घटना
इस प्रकार घटीः- डॉ० सैफुद्दीन किचलू और डॉ० सत्यपाल को अंग्रजी शासन के आदेश पर गिरफ्तार कर लिया गया। इस खबर को सुनते ही अमृतसर में सार्वजनिक हड़ताल हो गई। 13 अप्रैल को वैशाखी के दिन लगभग 20 हजार व्यक्ति (स्त्री पुरूष और बच्चे) जलियाँवाला बाग में एकत्रित हुए। यहाँ शांतिपूर्ण तरीके से सभा चल रही थी। जनरल डायर, जो जालंधर डिवीजन का कमांडर था सेना लेकर वहाँ गया। बिना किसी चेतावनी के उसने जलियाँवाला बाग में एकत्रित लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। लगभग 10 मिनट तक लगातार गोली चलती रही। यहाँ पर लोग निहत्थे थे और बाहर निकलने का रास्ता संकीर्ण था। अतः लोग अपना बचाव भी नहीं कर पाए।
प्रारत जानकारी के अनुसार लगभग 1000 लोग मारे गए लेकिन अंग्रेजी सरकार ने अपनी सरकारी रिपोर्ट में 379 व्यवितयों के मारे जाने की सूचना दी इस घटना की सूचना से लोगों का आक्रांश अंग्रेजी सरकार के प्रति बहुत बढ़ गया इस पर काबू पाने के लिए 15 अप्रैल को प्रातः काल से अमृतसर तथा लाहौर 16 अप्रैल को गुजरावाला 19 अप्रैल को गुजरात एवं 24 अप्रैल को लायलपुर में मार्शल लाँ लागू कर दिया गया।
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अतः मेरा यह निवेदन है कि आप इस घटना को अपने अखबार के मुख्य पृष्ठ पर छापें जिससे न सिर्फ भारत वर्षा में बल्कि विश्व के सभी लोग अंग्रजों के इस कायरता पूर्ण अमानवीय कार्य को जान सकें । अंग्रजी सरकार जो जनरल डायर को ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक कहकर पुरस्कृत कर रही है उसे दंडित किया जाए ।
जय हिंद
भवदीय
(ख) साइमन कमीशन
उत्तर:-संपादक
नवजागरण
कलकत्ता
महोदय,
साइमन कमीशन की रिपोर्ट भारतीयों को संतुष्ट करने का असफल प्रयास रहा 1919 के एक्ट के अनुसार 10 वर्ष के बाद भारत में उत्तरदायी शासन की प्रगति की जाँच के लिए एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान किया गया था। इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे।
3 फरवरी 1928 ई० को ‘साइमन कमीशन’ बंबई पहुँचा। चारों तरफ ‘साइमन वापिस जाओं’ का नारा गुजरने लगा। साइमन विरोधी प्रदर्शन का नेतृत्व लाला लाजपतराय ने किया। साइमन कमीशन की रिपोर्ट भारतीयों के असंतोष को दूर करने में असमर्थ रही। इस रिपोर्ट में न तो औपनिवेशिक साम्राज्य का उल्लेख है और न तो अधिराज्य की स्थिति को ही स्पष्ट किया गया। साथ ही केंद्र में उत्तरदायी सरकार की स्थापना का भी उल्लेख नही था। कमीशन ने वयस्क मताधिकार को अव्यवहारिक बताकर करा दिया। अतः देश में चारों ओर इसका विरोध होना स्वाभाविक है। सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधियों को पूर्ण समर्थन देना सरकार के गलत उद्देश्यों को उजागर करता है।
अतः मैं यह नम्रर निवेदन करती हूँ कि साइमन कमीशन की रिपोर्ट को महत्तवहीन और भारतीय भावनाओं पर किया गया आघात बताएँ। इस खबर को मुख्य पृष्ठ पर छापकर अंग्रजी सरकार की आलोचना करें।
जय हिंद
भवदीय
स, ल, व
4 . इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।
उत्तरः- इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना निम्नलिखित है।
भारत माता की छवि
(1) भारत माता को शांत, गंभीर दैवी और अध्यात्मिक गुणों से युक्त दिखाया गया है।
(2) भारत माता दूसरी छवि में शिक्षा, भोजन और कपड़े दे रही हैं। एक हाथ में माला उसके सन्यासी गुणों को रेखांकित करती है।
(3) इसमें भारत माता को एक सन्यासिनी के रूप में दर्शाया गया है। भारत माता के हाथ में त्रिशूल है। और वह हाथी और शेर के बीच खड़ी हैं। दोनों ही शक्ति और सत्ता का प्रतीक हैं।
(4) 1905 ई० में अबनींद्र-नाथ टैगोर ने भारत माता की छवि को बनाया था।
जर्मेनिया की छवि
(1) जर्मेनिया को एक वीर साहसी तथा देश की रक्षा करने वाली स्त्री के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
(2) जबकि जर्मेनिया के हाथ में तलवार पर खुदा हुआ है जर्मन तलवार जर्मन राइन की रक्षा करती है।
(3) जर्मेनिया को ‘गार्डिंग द राइन’ यानी राइन नदी पर पहरा देती हुई दर्शाया गया है।
(4) 1848 ई० में चित्रकार फिलिप वेट ने जर्मेनिया की छवि को बनाया था।
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चर्चा करें-
1 . 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहो की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षो के बारे में लिखते हुए यह दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए।
उत्तरः- 1921 ई० में असहयोग आंदोलन में अनेक सामाजिक समूहों ने भाग लिया था। जिसमें से मुख्य निम्नलिखित है।
(1) कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता।
(2) मुस्लिम खिलाफत कमेटी के कार्यकर्ता।
(3) विद्यार्थी वर्ग का समूह।
(4) ग्रामीण क्षेत्रों के किसान का समूह।
(5) शहरी मध्यम वर्ग का समूह।
(6) जंगली क्षेत्रों के आदिवासी समूह।
इन समूहों में से निम्नलिखित तीन की चर्चा करेंगे कि वे असहयोग आंदोलन में क्यों शामिल हुए?
(1) विद्यार्थी वर्ग का समूहः-अंग्रेज
विद्यार्थी लोगों के साथ भी बहुत बुरा व्यवहार करता था। भारतीय विद्यार्थी को जान बुझकर परिक्षा में असफल करा दिया जाता था जिससे उनलोगों को बहुत सारी कठिनाई का समना करना पड़ता था। भारतीय बच्चों को स्कूल में ठीक से पढ़ने नहीं दिया जाता था। इसी कारण से ये लोग भी असहयोग आंदोलन में शामिल हुए। और अपने अधिकार के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिए।
(2) मुस्लिम खिलाफत कमेटी के कार्यकर्ताः-
खिलाफत आंदोलन का मुख्य उद्देश्य खलीफा की शक्ति को फिर से स्थापित करना था। प्रथम युद्ध के समय मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच समझौता हो गया था। मुस्लिम लीग पर राष्ट्रवादी नेताओं का प्रभाव कायम हो गया था। नवंबर 1919 में गाँधीजी ने हिंदू और मुसलमान नेताओं का एक सम्मेलन दिल्ली में आयोजित किया। इसका नेतृत्व गाँधीजी ने किया था। सभी के सर्वसम्मति से खिलाफत आंदोलन में समर्थन देने का निश्चय किया गाँधीजी के प्रोत्साहन पर डॉक्टर अंसारी 19 जनवरी 1919 को भारत के गवर्नर जनरल चेम्सफोड से भेंट की। गाँधी जी के आदेश पर शिष्टमंडल मौलाना मुहम्मद अली के नेतृत्व में इंग्लैंड भी गया लेकिन उन्हें निराश होकर लौटना पड़ा। तब उन्होंने गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के आहान पर आंदोलन में सहयोग दिया। हिंदू-मुस्लिम एकता के साथ यह आंदोलन शुरू हुआ। सितंबर 1920 को खिलाफत कमेटी के साथ मिलकर कांग्रेस ने इलाहाबाद की बैठक में असहयोग आंदोलन का निश्चय किया।
(3) शहरी मध्यम वर्गं का समूहः- शहरी मध्यम वर्ग ने गाँधीजी के स्वराज्य के आह्नन को स्वीकार कर लिया और उन्होंने विदेशी सामानों का बहिष्कार किया। वकीलों ने मुकदमा लड़ना बंद कर दिया। मद्रास के अलावा ज्यादातर प्रांतों में परिषद् चुनावों का बहिस्कार किया गया था।
2 . नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।
उत्तरः- 31 जनवरी 1930 को गाँधी जी ने वायसराय इरविन को एक खत लिखा। जिसमें उन्होंने 11 माँगो का उल्लेख किया था। जिसमें से एक नमक कर को समाप्त करने के लिए बोला गया था। अंग्रेज नमक पर अधिकार लगा दिया था। नमक जो अमीर-गरीब सभी वर्ग के लिए जरूरी था अतः नमक पर कर और उसके उत्पादन पर सरकारी अंकुश को महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन का सबसे दमनकारी पहलु बताया।
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गाँधी जी ने एक पत्र द्वारा चेतावनी दी कि यदि 11 मार्च तक उनकी माँग पूरी नहीं होगी तो कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर देगी। इरविन के द्वारा उनके प्रस्तावों को ठुकरा दिया गया। तब गाँधी जी ने 78 सहयोगियों के साथ नमक या़त्रा शुरू कर दी। यह यात्रा साबरमती में गाँधी जी के आश्रम 240 किलोमीटर दूर दांडी नामक स्थान तक की थी। गाँधी जी की टोली 24 दिनों तक प्रतिदिन 10 मिल का सफर तय करती थी। 6 अप्रैल को गाँधी जी दांडी पहुँचे और उन्होंने समुन्द्र के पानी को उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लेंघन था इस तरह न केवल अंग्रेजों की शांतिपूर्ण अवज्ञा की गई बल्कि औपनिवेशिक कानूनों का उल्लघंन करने के लिए आह्नान किया जाने लगा देश के हजारों लोगों ने नमक कारखाने के सामने प्रदर्शन भी किया। विदेशी कपड़ों का बहिस्कार तथा शराब की दुकानों की पिकेटिंग होने लगी। बहुत सारे स्थानों पर वन कानूनों का उल्लघंक करने लगे इन घटनाओं के बाद औपनिवेशिक सरकार कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार करने लगी।
इस प्रकार नमक यात्रा उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक सिद्ध हुई।
3 . कल्पना कीजिए कि आप सिविल नाफरमानी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं। बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता।
उत्तरः- सिविल नाफरमानी आंदोलन में अनेक औरतों के साथ मैंने भी बड़े पैमाने पर भाग लिया। गाँधी जी के नमक सत्याग्रह के समय उनकी बातों को सुनने के लिए हम सभी महिलाएँ अपने घरों से बाहर आ जाती थी। मैंने उस समय अनेक जुलूसों में हिस्सा लिया। नमक बनाया, विदेशी कपड़ो एवं शराब की दुकानों की पिकेटिंग की। बहुत सी महिलाओं के साथ मैं भी जेल गई। मैंने इस आंदोलन के दौरान यह पाया कि शहरी इलाको में ज्यादातर ऊँची जाति की महिलाएँ सक्रिय थी जबकि ग्रामीण इलाको में संपन्न किसान परिवारों की महिलाएँ आंदोलन में हिस्सा ले रही थीं।
4 . राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे।
उत्तरः- राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर निम्नलिखित कारणों से बँट हुए थे।
1909 से मुस्लिम लीग सांप्रदायिक आधार पर मुसलमानों के लिए अगले चुनावों की माँग कर रहे
थे। लखनऊ समझौता में अलग चुनाव की बात को स्वीकार कर लिया गया था।
1919 के अधिनियम में पृथक चुनाव की व्यवस्था कर दी गई थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास और असुरक्षा की भावना बढ़ते लगी। कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने एकता स्थापित करने की कोशिश की। लेकिन भावी विधान सभाओं में प्रतिनिधित्व के सवाल पर मतभेद चलता रहा। मुस्लिम नेता और बुद्धिजीवी भारत में अल्पसंख्यकों के रूप में मुसलमानों की स्थिति पर चिंतत थे। क्योंकि उन्हें हिंदू बहुसंख्यकों से यह भय था कि कहीं मुसलमानों की संस्कृति और पहचान खो न जाए।
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