इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 9 हिंदी के पाठ दो ‘भारत का पुरातन बिधापीठ : नालंदा’ (Bharat Ka Puratan Vidyapeeth) के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे।
पाठ :- 2
भारत का पुरातन बिधापीठ : नालंदा
लेखक- राजेंद्र प्रसाद
जन्म :- 3 दिसम्बर 1844 ई. को सारण जिला (बिहार ) के जीरादेई गाँव में हुआ था
पिता :- महादेव सहाय फ़ारसी एवं संस्कृति के अच्छे जानकर थे। वे पहलवानी और घुड़स्वरी के सौकीन थे।
शिक्षा :- सबसे पहले उनका नमांकन छपरा के हाइ स्कूल में हुआ और वहाँ वे आठवे दर्जे में रखे गए। वार्षिक परीक्षा में वे प्रथम आये। स्कूल के प्रचार्य ने प्राप्ताँक से प्रसन्न होकर उन्हें दुहरी प्रोन्नती दी।
1902 ई. में वे कलकत्ता में प्रथम आये उसके बाद आई. ए. बी. ए. और बी. एल. प्रेजिडेंसी कॉलेज से किया। 1911 ई. में वे कलकत्ता में वकील दल में शामिल हुए। 1916 ई. में जब पटना में एक अलग न्यालय स्थापित हुआ तब वे वकालत करने के लिए पटना चले आये।
निधन :- 28 फ़रवरी 1963 ई. में ही हो गया
रचनाएँ :- आत्मकथा,खंडित भारत,बापू के कदमो पर तथा गाँधी जी की देन।
विशेष :- रजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के प्रथम स्थाई अध्यक्ष हुए तथा भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रति बने पाये।
पाठ 2
भारत का पुरातन बिधापीठ : नालंदा
प्रस्तुत पाठ भारत का पुरातन बिधापीठ : ‘नालंदा’ एक निबंध है। इस निबंध को एल महान लेखक राजेंद्र प्रसाद के द्वारा लिखा गया है। इस निबंध में लेखक नलंदा के बिश्वाविद्यालय, स्कूल अर्थात वहाँ जितने भी शिक्षा का केंद्र था। जहाँ पर बड़े बड़े लोगो ने शिक्षा प्राप्त की है वहाँ के शिक्षा केंद्र के इतिहास के बारे में बताते है लेखक कहते हैं की प्रस्तुत पाठ ‘भारत का पुरातन बिधापिठ : नालंदा ‘ हमारे इतिहास की एक गौरवपूर्ण कथा को समेटे हुए है। यह पाठ तत्कालीन शिक्षा बेवस्था की ऐसी झांकी पेस करता है। जिसमे हमारी प्राचीन (पुरानी ) भारतीय शिक्षा एवं विधा केन्द्रो का महानतम स्वरूप दिखलाई पड़ता है। Bharat Ka Puratan Vidyapeeth
नालंदा हमारे इतिहास में अत्यंत आकर्षक नाम है, नालंदा प्राचीन समय में शिक्षा के बहुत है महत्वपूर्ण केंद्र था। जहाँ से न केवल भारतीय लोग शिक्षा प्राप्त करके महान बने हैं बल्कि यहाँ एशिया महाद्वीप के वस्तुत भू-भाग विधा समन्धि सूत्र भी उसके साथ जुड़े हुए थे। यहाँ प्रदेश विदेश के लोगो अपना जाती धर्म सबको भुलाकर शिक्षा ग्रहण करते थे तथा एक से बढ़कर एक बड़ा कार्य किये है। लगभग छः सौ वर्षो तक नालंदा एशिया का चैतन्य केंद्र बना रहा।
मगध की प्राचीन राजधानी वैभार पांच प्रवतो के मध्य में बसी हुई गिरिब्रज या राजग्रह नामक स्थान में थी। वर्तमान नालंदा उसी राजग्रह के तप्त कुंडो से सात मिल उत्तर की ओर था। नालंदा का प्राचीन इतिहास भगवान बुद्ध और भगवान महावीर के समय तक जाता है। बुद्ध के समय नालंदा गाँव प्रवारीको अर्थात ( चिगा इत्यादि का निर्माता ) का आगमन हुआ था। जैन ग्रंथो के अनुसार नालंदा में महावीर और आचार्य मेखलीपुत्र गोसाल की भेंट हुई थी। उस समय राजग्रह नगर के निकट का कस्बा अथवा बस्ती समझा जाता था। जँहा महावीर ने चौदह वर्षावास अर्थात ( वर्षा ऋतू में एक निश्चित स्थान पर समय बिताना ) व्यतीत किये। सूत्रकृतांग के अनुसार नालंदा के धनी नागरिक लेप ने धन धान्य शैया, आसन रथ, स्वर्ण आदि के द्वारा भगवान बुद्ध का स्वागत किया और उसका शिष्य बन गया था। यहाँ विदेश राजा महाराजा लोगो शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे इस विश्वविद्यालय में सभी प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। लोग अपने रूचि के अनुसार विधा को ग्रहण करते और उसका वर्णन अपने अपने लोगो को बताया करते है। नालंदा बिश्वाविधालय बहुत ही महान था। आज भी इसका नाम गर्व के साथ लिया जाता है।
Bharat Ka Puratan Vidyapeeth
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