इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 8 हिंदी के पाठ नौ ‘अशोक का शस्त्र त्याग’ ( Ashok Ka Shastra Tyag class 8th Hindi) के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे। जिसके लेखक वशीधर श्रीवास्त जी है।
9. अशोक का शस्त्र त्याग
‘अशोक का शस्त्रत्याग’ एक एकांकी है। जिससे लेखक वशीधर श्रीवास्त जी है। इस एकांकी के माध्यम से एकांकीकार शांति के पक्ष में सक्रिय होने की शिक्षा देते हैं।
पहला दृश्य
एक ही मैदान में एक ओर मगध के सैनिकों के शिविर लगे थे। बीच में मगध की पताका फहर रही थी। तथा पताका के पास ही सम्राट अशोक का शिविर था। संध्या बीच चुकी थी आकाश में तारे चमकने लगे थे। शिविरों में दीपक जल गया था। अपने शिविर में अशोक अकेले टहल रहे थे। उनकी मन पर चिंन्ता की छाया थी। Ashok Ka Shastra Tyag class 8th Hindi
अशोक मन ही मन सोच रहे थे की आज चार साल से युद्ध लड़ रहे है। पर अभी कलिंग को नहीं जीत पाय हैं। तभी अशोक के पास संवादाता आता है। और बोलता है कि कलिंग के महाराज युद्ध में मारे गए। अशोक खुश हो जाते है और बोलते है। तब तो हम कलिंग को जीत लिए पर वह सेवददाता चुप रहता है। धीरे से कहता है। की महाराज कैसे कह दे की कलिंग जीत लिया गया क्योंकि आज भी कलिंग के फाटक बंद है अशोक खुश होकर कहते है। बन्द है तो खुल जायेंगे। और वह पुरी उत्साह के साथ अंतिम युद्ध करने की तैयारी करता हैं।
दूसरा दृश्य
दूसरे दिन प्रातः काल के समय शस़्त्र सज्जित अशोक घोड़ पर बैठते है। और उनके पास उनका सेनापति है। सामने कलिंग-दुर्ग था जिसका फाटक अभी तक बंद था।
अशोक कलिंग के फाटक के पास अपने सेना के साथ खड़ा थे तथा वह अपनी सैनिकों को उत्साहित कर रहे थे कि आज हमलोग किसी भी हाल में कलिंग पर अपना पताका फहराएँगे अशोक अपनी सैनिको को यह शपत दिलाते है कि आज हम अपनी मातृभूमि की शपत लेकर प्रण करें। कि या तो हम कलिंग के दर्ग पर अधिकार कर लेंगे या सदा के लिए मृत्यु की गोद में सो जाएँगे। सभी सैनिक जांयकार लगाने लगते है। मगध की जय सम्राट अशोक की जय। Ashok Ka Shastra Tyag class 8th Hindi
तभी अचानक कलिंग दुर्ग का फाटक खुल जाता है। तथा इस दृश्य को देखकर अशोक और सभी सैनिक आश्चर्य चकित हो जाते है। उस दुर्ग में से केवल स्त्री सैनिक निकलती हैं। उसमें सबसे आगें कलिंग के महाराज की पत्नि पदमा पुरूष की कपड़े पहने हुए आगे रहती हैं। वह भी अपनी सेनानियों से कहती है। कि हमलोग आज बदला ले के मानेंगे। अपने दुश्मनों से लेकिन अशोक स्त्रियों से युद्ध नही करता है। वह उनलोगो को माना कर देता है युद्ध करने से अशोक महारानी पदमा के आगे अपना सिर झुका कर माफी माँगता है। लेकिन वह नहीं माफ करती है। पदमा कहती है कि मैं कुछ नहीं जानती हूँ। मै तो केवल युद्ध करना चाहती हूँ। किसी भी तरह अशोक पदमा के आगे अपना मस्तक झुका देता और बोलते है। महारानी पदमा अपको जो करना है। कर लीजिए जिससे पदमा मान जाती और युद्ध नहीं होता हैं।
तीसरा दृश्य
अशोक इस युद्ध के बाद यह शपत ले लेते है कि हम कभी भी अब शस्त्र नहीं उठाएँगे तथा वह उसके बाद बौद्ध धर्म को अपना लेते है और सभी लोगो की सेवा करने लगते है। और अपनी जिन्दगी को शांतीमय बना लेते है।
अशोक यह प्रतिज्ञा कर लेते है कि मैं जब तक जीवित रहूँगा। सब प्राणियों को सुख और शांति पहुँचाने का प्रयत्न करूँगा। सब धर्मो को समान दृष्टि से देखूँगा।
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